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आचार्य जयमल युगपुरुष ही नहीं, युग दृष्टा भी हैं-साध्वी डॉ.चंदना

धर्मसभा का आयोजन

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आचार्य जयमल युगपुरुष ही नहीं, युग दृष्टा भी हैं-साध्वी डॉ.चंदना

आचार्य जयमल युगपुरुष ही नहीं, युग दृष्टा भी हैं-साध्वी डॉ.चंदना

बेंगलूरु. वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ के तत्वावधान में गुरु दिवाकर केवल दरबार मकाना गार्डन में विराजित साध्वी डॉ.चन्दना ने कहा
कि युग पुरुष अपने युग का प्रबल प्रतिनिधित्व करता है। सत्यम शिवम-सुन्दरम से युग की जनता के जीवन को चमकाता है। आचार्य जयमल युगपुरुष ही नहीं, युग दृष्टा भी हैं। वे स्थानकवासी परम्परा के बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न आचार्य थे, जिन्होंने जन-जीवन को नया विचार, नई वाणी और नया कर्म दिया। भोग-मार्ग से हटाकर योग के प्रशस्त मार्ग पर अग्रसर होने की सत्प्रेरणा प्रदान की। बाह्य औपचारिकताओं और स्थूल कर्मकांडों के स्थान पर आध्यात्मिक विकास एवं आत्मोपासना पर विशेष बल दिया। शिवसुन्दरी को वरण करने के लिए मां की ममता पिता का दुलार और नवपरिणिता का अपार प्यार ठुकरा श्रमण धर्म स्वीकार कर निरन्तर सोलह वर्ष तक एकान्तर तप का आचरण किया। यहां तक कि आचार्य भूधर के स्वर्गारोहण के दिन से लेकर पचास वर्ष तक कभी लेटकर नहीं सोए। कितनी विलक्षण थी उनकी आध्यात्मिक साधना आचार्य जयमल मनोविजेता थे, उन्होंने स्फटिक-सा निर्मल और समुद्र-सा अगाध ज्ञान पाया था, किन्तु कभी उसका अहंकार नहीं किया, उन्होंने महान त्याग किया, किन्तु कभी उस त्याग का विज्ञापन नहीं किया, उन्होंने उत्कृष्ट तपस्या की, किन्तु उसका प्रचार नहीं किया। कमल कब कहता है कि सुगन्ध लेने के लिए मेरे पास आओ, किन्तु भंवरे तो सौरभ लेने के लिए उस पर उमड़-घुमड़ कर मंडराते ही रहते हैं। यही कारण है कि सम्राट से लेकर हजारों-हजार व्यक्ति उनके गुणों पर मुग्ध होते रहे और उनके अनुयायी बनते रहे। आचार्य ने सतत जागरुकता एवं उग्र साधना से न केवल अपने अखण्ड ज्योतिर्मय आत्म स्वरूप का विकास ही किया, अपितु आत्म विकासी उपदेश एवं काव्य रचना द्वारा साहित्य की जो वृद्धि की वह अपूर्व है, अनूठी है। हिन्दी साहित्य की दृष्टि से आचार्य जयमल रीतिकाल में हुए हैं, किन्तु उन्होंने रीतिकालीन उद्दाम वासनात्मक श्रृंगारधारा को भक्तिकालीन प्रशान्त साधनात्मक धारा की ओर मोड़ा। आगमिक कथाओं को ही अपने काव्य में प्रमुखता दी। आपके काव्य में लौकिक सुख की प्रमुखता नहीं, किन्तु आध्यात्मिक उद्दाम वासनात्मक शृंगारधारा को भक्तिकालीन प्रशान्त साधनात्मक धारा की ओर मोड़ा। आगमिक कथाओं को ही अपने काव्य में प्रमुखता दी। आपके काव्य में लौकिक सुख की प्रमुखता नहीं, किन्तु आध्यात्मिक आनन्द की उद्भावना है। आचार्य प्रवर श्री जयमल जी महाराज की उपलब्ध कुछ रचनाओं का संकलन, उन्हीं के एतद्युगीन उत्तराधिकारी एवं वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रमण संघ के युवाचार्य मिश्रीमल "मधुकर" द्वारा जयवाणी ग्रन्थ में किया गया है, जो स्तुति, सज्झाय उपदेशीयपद एवं चरित्र चर्चा दोहावली के रूप में विभक्त हैं। दादा दादी , नाना नानी भाषण प्रतियोगिता में 90 बच्चों ने भाग लिया। रोशन पागारिया, दिलीप पागारिया, कांतिलाल लोढ़ा, महेंद्र पागारिया, रायचूर से कांतिलाल बंब आदि उपस्थित थे।