
बेंगलूरु. आदिनाथ जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ में विराजित पंन्यास अभ्युदयप्रभ विजय ने प्रवचन में कहा कि ज्ञान का आचरण जीवन में न हो पाया तो वह ज्ञान अवश्य बोझ रूप ही बननेवाला है। दूसरें जीवों को अशाता देंगे तो हमें भी अशाता मिलेगी ही। हमारी वजह से आसपास में कोई नाखुश हैं तो हम भी नाखुश ही होने वाले हैं।
भगवान महावीर प्रभु ने विधि और निषेध रूपी दो मार्ग बताए हैं। विधि मार्ग में जो करने योग्य हैं, जैसे, प्रभु दर्शन, प्रभु पूजा, सामायिक, प्रतिक्रमण, प्रवचन श्रवण, तपस्या, गुरुवंदन, जीवदया आदि सुकृत आते हैं। निषेध मार्ग में नहीं करने योग्य कार्य जैसे निंदा, चोरी, मारना, जीव हत्या करना, झूठ बोलना, क्रोध, मान, लोभ, ईष्र्या जैसे दुष्कृत आते हैं। व्यक्ति को दोनों मार्ग समझकर जीवन में उतारने से, आचरण में लाने से ज्ञान बोझ रूप नहीं लगेगा।
आचार्य उदयप्रभसूरीश्वर ने कहा कि मंगलाचरण तीन प्रकार के होते हैं - नमस्कार मंगलाचरण, आशीर्वाद मंगलाचरण और निर्देश मंगलाचरण। तीनों की व्याख्या भी समझाई।
आचार्य ने कहा कि मानव भव से मानव शरीर की प्रधानता है और इसी शरीर से मोक्ष मिल सकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि इस मानव शरीर के अंदर उत्तम आराधना की शक्ति है, तप त्याग के परिणाम मानव भव में है।
मानव शरीर त्याग का शरीर है और देवताओं का शरीर भोग का शरीर है। नवकार में पंच परमेष्टि को नमस्कार, एकांतवाद व मिथ्या का तिरस्कार, संसार के भोगों का, विषयों का और वासनाओं का प्रतिकार समाया हुआ हैं। अवसर पर ज्ञान का उपयोग न होने से मन भटकता है और अवसर पर संयम न रखने के कारण दु:ख आता है।
Published on:
20 Jul 2021 12:26 pm
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