
हृदय को तेजी से गिरफ्त में ले रहा कृत्रिम ट्रांस फैट
निखिल कुमार
वायु प्रदूषण, धूम्रपान और मांसाहार ही नहीं बल्कि शुद्ध संतृप्त वसा अम्ल (प्योर सैचुरेटेड फैटी एसिड) और ट्रांस फैटी एसिड या कृत्रिम ट्रांस फैट, जो इंडस्ट्रियल प्रोसेस से बनाए जाते हैं, का जरूरत से ज्यादा सेवन भी कम उम्र में ही हृदय को चपेट में ले विभिन्न बीमारियों सहित हृदय घात का भी कारण बन रहा है। चिकित्सकों के अनुसार मटन और अन्य लाल मांस का सेवन भी हृदय के लिए घातक साबित हो रहा है। लाल मांस में मौजूद Pure saturated fatty acids का ज्यादा सेवन दिल के लिए खतरनाक है। उपनगरीय आबादी के बीच मांस की खपत अधिक है। डोनट्स, तले हुए खाद्य पदार्थ, केक, तेल, बिस्कुट, डिब्बाबंद भोजन, स्प्रेड, क्रैकर्स आदि trans fatty acids के स्रोत हैं। हृदय रोग विशेषज्ञों ने चेताया है।
मौत का जोखिम 28 फीसदी ज्यादा
हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री Mansukh Mandaviya ने भी लोकसभा में ट्रांस फैटी एसिड व हृदय पर इसके प्रभावों को लेकर चिंता जता चुके हैं। एक अनुमान के अनुसार देश (India) में हर साल होने वाली मौतों में से करीब 5.40 लाख मौतें ट्रांस फैटी एसिड के कारण होती हैं। इस एसिड के कारण हृदय संबंधित बीमारियों से मौत का जोखित करीब 28 फीसदी तक बढ़ सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में कोरोनरी हार्ट डिजीज से होने वालीं 4.6 फीसदी मौतें ट्रांस फैटी एसिड से संबंधित हो सकती हैं।
एलडीएल बढ़ना खतरे की घंटी
जयदेव इंस्टीट्यूट ऑफ कार्डियोवैस्क्यूलर साइंसेस एंड रिसर्च (जेआइसीएसआर) के निदेशक डॉ. सी. एन. मंजूनाथ ने बताया कि कृत्रिम ट्रांस फैट खराब कम घनत्व वाले लिपोप्रोटीन (LDL) कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाता है और अच्छे एलडीएल कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम कर देता है। इसके कारण हृदय रोग और स्ट्रोक सहित टाइप-2 मधुमेह (Type 2 diabetes, heart disease and stroke) के विकास का खतरा कई गुणा बढ़ता है। इतना ही नहीं, धूम्रपान, वायु प्रदूषण और मांसाहार (Smoking, Air pollution and Non-vegetarian food) युवाओं के हृदय को समय से काफी पहले बीमारी बना रहा है। तीनों हृदयाघात के बड़े कारणों में से एक हैं।
प्रदूषण के कारण बीमारी और मौत का अनुपात नहीं
प्रदूषण के रूप में हवा में मौजूद बारीक धूल कण (पीएम या पार्टिकुलेट मैटर 2.5 ) रक्त वाहिकाओं में जमा हो ब्लड क्लॉट्स (रक्त के थक्कों) का कारण बन रहे हैं। 2.5 पीएम कण सूक्ष्म आकार के होने के कारण आसानी से हमारे शरीर के अंदर जा रहे हैं। भारत में प्रदूषण के कारण मौत और बीमारी के बोझ का कोई अनुपात नहीं है।
ट्रांस फैट फ्री लेबल
कुछ आहार विशेषज्ञों के अनुसार किसी भी खाद्य पदार्थ के पैकेट पर ट्रांस फैट की मात्रा स्पष्ट रूप से अंकित होनी चाहिए। न्यूट्रिशन लेवल देखकर भी प्रोडक्ट में ट्रांस फैट की मात्रा का पता लगा सकते हैं। ट्रांस फैट से पूरी तरह बचना काफी मुश्किल हो सकता है। कुछ देशों में तो फूड प्रोडक्ट पर ट्रांस-फैट-फ्री लेबल लगाकर प्रोडक्ट बेचे जाते हैं, लेकिन भारत में ज्यादातर मामलों में ऐसा नहीं है।
पांच सिगरेट पीने के बराबर
अध्ययन दल के प्रमुख डॉ. राहुल पाटिल के अनुसार एक लाख की आबादी पर 200 लोगों का हृदय अकेले Air Pollution के कारण खतरे में है। पांच मिनट तक प्रदूषित क्षेत्र में ट्रैफिक जंक्शन या जाम में फंसना पांच सिगरेट पीने के बराबर है।
ऑक्सीजन की तुलना में सीओ 210 गुना तेज
जेआइसीएसआर में उपचार कराने पहुंचे या करा चुके 40 वर्ष या इससे कम के 2,400 मरीजों पर किए गए एक अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार heart attack के युवा मरीजों में 94 फीसदी मरीज मांसाहारी थे। 35 फीसदी ऐसे मरीज थे, जिनके हृदय के बीमार होने के पीछे दूर-दूर तक कोई पारंपरिक कारक सामने नहीं आया।
ऐसे मरीजों के रक्त में कार्बन मोनोऑक्साइड (सीओ) की मात्रा अधिक थी। ऑक्सीजन की तुलना में सीओ 210 गुना तेजी से रक्त में मिलने की क्षमता रखता है। गाड़ियों से निकलने वाला दूषित धुआं इसका बड़ा स्रोत होता है। 2,400 में से 91 फीसदी मरीज पुरुष और शेष महिलाएं थीं। हृदय घात के 11 फीसदी मरीजों को मधुमेह था जबकि 49 फीसदी मरीज या तो धूम्रपान के आदि थे या पैसिव स्मोकिंग के शिकार। 25 फीसदी मरीजों की आयु 30 से कम थी। 30 फीसदी मरीज 31-35 आयु वर्ग के थे जबकि 45 फीसदी मरीजों की उम्र 36-40 वर्ष के बीच थी। 31 फीसदी मरीज ग्रामीण क्षेत्र से थे।
Published on:
29 Sept 2023 07:54 pm
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