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बीड़ी बनाने वाले को मिली नई राह

मेंगलूरु निवासी नवीन परिवार के पालन पोषण के लिए दो माह पहले तक बीड़ी बनाता था। अब वह मंदिर में चढ़ाए गए फूलों से आर्गेनिक अगरबत्ती बनाता है। बीड़ी के धंधे से तीन गुना ज्यादा कमाता है। उसे संतोष है कि उसकी बनाई बीड़ी से अब किसी को कैंसर नहीं होगा।

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बीड़ी बनाने वाले को मिली नई राह

बेंगलूरु. मेंगलूरु निवासी नवीन परिवार के पालन पोषण के लिए दो माह पहले तक बीड़ी बनाता था। अब वह मंदिर में चढ़ाए गए फूलों से आर्गेनिक अगरबत्ती बनाता है। बीड़ी के धंधे से तीन गुना ज्यादा कमाता है। उसे संतोष है कि उसकी बनाई बीड़ी से अब किसी को कैंसर नहीं होगा। वह अपने परिवार के साथ खुश है। यह ओरल कैंसर विशेषज्ञ डॉ. विशाल राव व उनके भाई विश्वास राव के प्रयासों से संभव हुआ। डॉ. राव ने बताया कि दो माह पहले नवीन को अगरबत्ती बनाने की मशीन खरीद कर दी थी। उसे समझाने में समय लगा कि जितनी देर में वह बीड़ी का एक बंडल बनाता है, तब तक तंबाकू जनित बीमारियां किसी की जान ले लेती हैं। ऐसी कमाई किस काम की जो किसी का जीवन छीन ले। नवीन ने अगरबत्ती बनाना शुरू किया। बीड़ी बना जहां दिन में वह ८० रुपए कमाता था। अब अगरबत्ती बना कर दिन में कम से कम २०० रुपए तक कमा लेता है।

जड़ से लेकर पत्ते तक में नशा
डॉ. राव ने कहा कि बीड़ी बनाने के काम लगे लोगों के साथ उनके परिजन भी विभिन्न बीमारियों का शिकार हो जाते हैं। सबसे ज्यादा खतरा हरी तंबाकू नामक बीमारी (ग्रीन टोबैको सिकनेस) का रहता है। तंबाकू का पौधा जड़ से लेकर पत्तेतक नशे से भरा होता है। बीड़ी बनाने के क्रम में निकोटिन त्वचा के माध्यम से शरीर में प्रवेश कर जाता है। नर्वस सिस्टम को प्रभावित करता है, रक्तचाप बढ़ता है। दिल की धड़कने तेज हो जाती हैं। इंसान निकोटिन का आदी हो जाता है। डॉ. राव के अनुसार तंबाकू उत्पादक किसानों व इससे विभिन्न उत्पाद तैयार करने में लगे लोगों के लिए वैकल्पिक काम की व्यवस्था की जाए।