
बेंगलूरु. कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कहा कि किसी बड़े नाले के दोनों ओर निजी संपत्तियों को जोडऩे के लिए पुल बनाने को अतिक्रमण नहीं कहा जा सकता है। न्यायाधीश सूरज गोविंदराज ने एक हाउसिंग कंपनी की याचिका को स्वीकार करते हुए यह आदेश पारित किया।
याचिकाकर्ता ने बेंगलूरु शहरी जिले में आनेकल तालुक के तहसीलदार की कार्रवाई पर सवाल उठाया था, जिसमें कंपनी द्वारा निर्मित तीन ओवरब्रिज का निर्माण अतिक्रमण माना और संपत्ति पर एक नोटिस लगा दिया, जिसमें कहा गया था कि पुल राजकालुवे (बरसाती नाले) पर अतिक्रमण करते हैं।
तहसीलदार ने एक पीएम कृष्णा की शिकायत पर कार्रवाई की। कृष्णा ने 2016 में आनेकल तालुक में अत्तिबेले होबली के एम. मेदाहल्ली गांव में सर्वेक्षण संख्या 39/1, 39/2, 40/3 और 42/1 में भूमि पर निर्मित जनाधार शुभ नामक अपार्टमेंट परिसरों को जोडऩे के लिए पुलों के निर्माण पर शिकायत की थी।
कंपनी ने साल 2013 में नेलमंगला टाउन प्लानिंग अथॉरिटी से अनुमति प्राप्त करने के बाद 1,128 फ्लैटों का निर्माण किया और कब्जा प्रमाण पत्र भी प्राप्त किया था।
अदालत ने कहा कि नियोजन प्राधिकरण, जिसने तहसीलदार की अनापत्ति हासिल करने के बाद राजकालुवे के दोनों किनारों पर अपार्टमेंट परिसर की योजना को मंजूरी दी थी, उसने भी स्वीकृत योजना का कोई उल्लंघन नहीं पाया है। साथ ही, तहसीलदार को राजकालुवे के भीतर पानी के प्रवाह में बाधा डालने वाला कोई निर्माण नहीं मिला।
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता-कंपनी ने अपार्टमेंट परिसर के निवासियों को एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में जाने में सक्षम बनाने के लिए ओवरब्रिज का निर्माण किया था क्योंकि राजकलुवे संपत्ति को विभाजित करता है। अतिक्रमण की शिकायत निरर्थक है क्योंकि तहसीलदार ने स्वयं अपार्टमेंट परिसर के निर्माण से पहले प्रमाणित किया था। यह दर्शाता है कि अनुमोदन के लिए प्राधिकरण के समक्ष प्रस्तुत योजना में कोई अतिक्रमण नहीं था। कोर्ट ने तहसीलदार को नोटिस बोर्ड हटाने का निर्देश दिया।
Published on:
09 Dec 2023 01:00 am
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