
दसवीं के छात्र को कन्नड़ चुने बिना परीक्षा देने की अनुमति
Karnataka High Court ने गुरुवार को कर्नाटक माध्यमिक शिक्षा परीक्षा बोर्ड के निदेशक की एकल न्यायाधीश पीठ के एक आदेश के खिलाफ की गई अपील को खारिज कर दिया, जिसमें विद्या भारती इंग्लिश स्कूल के 10 वीं कक्षा के छात्र को तीन भाषाओं में से एक के रूप में Kannada का चयन किए बिना परीक्षा देने की अनुमति दी गई थी। राज्य सरकार ने कन्नड़ भाषा सीखने के नियम 2017 लागू किए हैं। जिसके तहत CBSE से संबद्ध हों या आईसीएसई, सभी स्कूलों को अनिवार्य रूप से कन्नड़ एक विषय के रूप में देना होगा।
मुख्य न्यायाधीश प्रसन्ना बी. वराले और न्यायाधीश एमजीएस कमल की खंडपीठ ने कहा, अलग से दर्ज किए जाने वाले कारणों से अपील खारिज की जाती है। स्कूल से आज ही छात्र को एडमिट कार्ड आदि देने के लिए कहें क्योंकि परीक्षा कल शुरू होने वाली है।
एकल न्यायाधीश की पीठ ने 27 फरवरी के अपने आदेश में छात्र के पिता रविशंकर द्वारा दायर याचिका को स्वीकार करते हुए स्कूल को निर्देश दिया था कि उनके बेटे को संस्कृत, english and hindi के साथ पहली, दूसरी और तीसरी भाषा के रूप में कक्षा दसवीं की पढ़ाई जारी रखने की अनुमति दे और एक विशेष मामले के रूप में परीक्षा शुल्क स्वीकार करते हुए 31 मार्च से शुरू होने वाली परीक्षा में बैठने की अनुमति दे।
कोर्ट ने कहा था कि मामला हर मामले में मिसाल के तौर पर काम नहीं करेगा। स्कूल ने पहले याचिकाकर्ता के बेटे को संस्कृत, अंग्रेजी और हिंदी में क्रमश: पहली, दूसरी और तीसरी भाषाओं के रूप में 10वीं कक्षा में पढ़ाई करने की अनुमति दी थी। लेकिन, बाद में यह घोषणा कर दी कि तीन भाषाओं में कन्नड़ नहीं चुनने वाले छात्रों को शैक्षणिक वर्ष 2022-23 के लिए 10वीं कक्षा की परीक्षा देने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
कभी नहीं किया कन्नड़ का अध्ययन
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उनके बेटे ने प्राथमिक शिक्षा के दौरान कभी भी कन्नड़ को भाषा के रूप में नहीं लिया और वह इसे पढ़ना-लिखना नहीं जानता। चूंकि उसकी बुनियादी शिक्षा कहीं और हुई थी, इसलिए उन्होंने तीन भाषाओं में से एक के रूप में कन्नड़ का अध्ययन नहीं किया। इसके अलावा, भाषा के रूप में कन्नड़ सीखना बहुत मुश्किल है क्योंकि उन्होंने अपनी पहली कक्षा से कन्नड़ का अध्ययन नहीं किया है।
अदालत ने कहा, यह छात्र से क्रूरता होगी
पीठ ने पक्षकारों के कथनों पर गौर करते हुए कहा, तथ्य यह है कि याचिकाकर्ता का बेटा कन्नड़ नहीं बोल सकता और उसने प्रारंभिक स्तर से कन्नड़ भाषा सीखी या पढ़ी नहीं है। अब, प्रतिवादी नंबर 3 यानी स्कूल और राज्य की ओर से उसे 10वीं में कन्नड़ को एक भाषा के रूप में लेने पर मजबूर करना और उससे बिना पढ़ाए गए प्रश्न पत्र का उत्तर देने की अपेक्षा करना क्रूर होगा।
अगर उसे 10वीं कक्षा की परीक्षा में कन्नड़ भाषा को एक विषय के रूप में लेने पर मजबूर किया गया, तो यह उसके पूरे जीवन और कॅरियर को बर्बाद कर देगा।
Published on:
02 Apr 2023 06:46 pm
बड़ी खबरें
View Allबैंगलोर
कर्नाटक
ट्रेंडिंग
