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समाज सुधारकों को जातीय सांचे में नहीं ढालें

वाल्मीकि जयंती पर बोले समाज कल्याण मंत्री प्रियांक खरगे

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समाज सुधारकों को जातीय सांचे में नहीं ढालें

बेंगलूरु. समाज कल्याण मंत्री प्रियांक खरगे ने कहा है कि महर्षि वाल्मीकि, संत बसवण्णा, कनकदास, डॉ. भीमराव आंबेडकर जैसे समाज सुधारक महापुरुषों को उनके समुदाय, जाति विशेष के सांचे में ढालना सही नहीं है। इस अवधारणाा के कारण इन शख्सियतों को इतिहास में समुचित स्थान नहीं मिल पा रहा है।

वे बुधवार को यहां अनुसूचित जनजाति कल्याण विभाग के तत्वावधान में विधानसौधा के बेंक्वेट हाल में आयोजित महर्षि वाल्मीकि जयंती समारोह का उद्घाटन करने के बाद बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि इन महापुरुषों को संबंधित जातियों तक सीमित कर दिए जाने की मानसिकता छोडऩी होगी। इनमें से किसी भी महापुरुष ने संबंधित समाज तक सीमित रहकर अपने संदेश नहीं दिए, बल्कि उन्होंने श्रेष्ठ समाज के निर्माण के लिए परिश्रम किया। लेकिन आज संबंधित जातियों व वर्गों तक सीमित रहकर इन महानुभावों के नाम पर पुरस्कार दिए जा रहे हैं।

पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा को महर्षि वाल्मीकि पुरस्कार के लिए चुनने के न्यायाधीश नागमोहनदास के नेतृत्व वाली समिति के निर्णय को अर्थपूर्ण करार देते हुए कहा कि नायक वाल्मीकि समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने तथा वाल्मीकि समाज के लिए गुरुपीठ की स्थापना करने में देवेगौड़ा का बड़ा योगदान रहा है। इसी वजह से उनको इस पुरस्कार के लिए चुना गया है।

उन्होंने कहा कि अफसोस इस बात का है कि राम नाम का जप करने वाले भाजपा के नेता रामायण की रचना करने वाले महर्षि वाल्मीकि को भूल गए हैं। वाल्मीकि ने रामायण के जरिए संदेश दिया कि समाज व राजधर्म किस तरह होना चाहिए, लेकिन उनके सिद्धांतों को अपनाने के लिए इच्छाशक्ति का अभाव है। राज्य की गठबंधन सरकार समाज में आर्थिक समानता लाने व नव कर्नाटक का निर्माण करने के लिए परिश्रम कर रही है।

हमारी सरकार ने वादे के मुताबिक किसानों का कर्ज माफ किया है और जन हितकारी शासन दे रही है। मानवीयता को भूलकर प्रबुद्ध भारत का निर्माण नहीं किया जा सकता। लिहाजा समाज के सभी वर्गों के लोगों को मुख्यधारा में लाना हमारी सरकार का मकसद है। पुरस्कार चयन समिति के अध्यक्ष व कर्नायक उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश नागमोहन दास ने कहा कि विश्व की समस्त मनुष्यों को न्याय देने का काम होने पर ही रामराज्य की स्थापना हो सकती है।

विश्व में अनेक क्रांतियां हो चुकी हैं और इनमें से ग्रंथों के जरिए हुई क्रांतियां ही प्रमुख हैं। इस तरह की कृतियों में से एक रामायण महाकाव्य भी है, जिसकी रचना महर्षि वाल्मीकि ने की थी। वाल्मीकि गुरुपीठ के प्रमुख प्रसन्नानंदपुरी स्वामी ने कहा कि बदलाव व परिवर्तन समाज पर अपना ही प्रभाव डालते हैं। सभी दार्शनिकों ने समाज की भलाई के लिए मार्गदर्शन दिया है।

उन्होंने राज्य सरकार से जनजातीय विश्वविद्यालय की स्थापना करने और इसके लिए अलग से सचिवालय शुरू करने की मांग की। कार्यक्रम में महापौर गंगाम्बिका मल्लिकार्जुन, विधान परिषद सदस्य एम.सी. वेणुगोपाल, पार्षद नरसिम्हा नायक नेत्रा पल्लवी, ई. वेंकटय्या आदि ने भाग लिया।