
दवा-प्रतिरोधी मिर्गी: करीब एक-तिहाई मरीजों पर आम दवा बेअसर
निखिल कुमार
टीबी (तपेदिक) की तरह मिर्गी के मरीज भी दवाओं के प्रतिरोधी होने का दंश झेल रहे हैं। चिकित्सकों के अनुसार बीते एक दशक के दौरान ऐसे मामले लगातार बढ़े हैं। मिर्गी के 30-40 फीसदी मरीजों पर मिर्गी की आम दवाएं काम नहीं करती हैं। इसे drug-resistant epilepsy कहा जाता है।
शराब का सेवन, अपर्याप्त नींद, चमकती रोशनी के संपर्क में आना और तनाव सहित आधुनिक जीवनशैली दौरे के प्रमुख योगदानकर्ता हैं और दवा प्रतिरोधी मिर्गी का कारण बन सकते हैं। मिर्गी के प्रकार के अनुसार दवा दी जानी चाहिए। कई मामलों में, अपर्याप्त खुराक या दवा के गलत उपयोग से मरीज दवा प्रतिरोधी हो सकता है।
Epilepsy के आम मरीजों की तुलना में दवा प्रतिरोधी मिर्गी के मरीजों में मृत्यु दूर 10 गुना ज्यादा है। ऐसे मरीजों का उपचार कठिन होता है। उपचार के अन्य तरीकों की जरूरत पड़ती है। पीडियाट्रिक न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. एच. संतोष ने बताया कि कुछ मिर्गी सर्जरी हैं, जो आमतौर पर विशेष रूप से मेडियल टेम्पोरल लोब मिर्गी के दौरे वाले मरीजों में की जाती हैं। वेगस तंत्रिका स्टिमुलेशन, डीप ब्रेन स्टिमुलेशन या रिस्पॉन्सिव न्यूरोस्टिम्यूलेशन जैसी अन्य थेरेपी भी हैं। केटोजेनिक आहार जैसी कुछ आहार थेरेपी भी हैं, जो दवा प्रतिरोधी मिर्गी के इलाज में सहायक हैं।
मस्तिष्क क्षति का खतरा
डॉ. वेंकटरमन ने बताया कि अनियंत्रित दौरे से मस्तिष्क क्षति हो सकती है। इसके कारण मस्तिष्क की शारीरिक, बौद्धिक और भावनात्मक गतिविधियां प्रभावित हो सकती हैं। इसके अलावा ऐंठन रोधी दवाओं की उच्च खुराक भी जीवन की गुणवत्ता को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकती है। दौरे और विशेषकर एक के बाद एक कई दौरोंके दौरान, जीवन को खतरा होता है। इसके अलावा इन मरीजों को गिरने और गंभीर चोट लगने तथा दुर्घटनाओं का भी खतरा रहता है।
अन्य सिंड्रोमों की जांच
न्यूरोसर्जन डॉ. एन. के. वेंकटरमन ने बताया कि लगभग एक तिर्हाई मरीजों पर उपलब्ध मिर्गीरोधी दवाओं का असर नहीं होता है। शुरुआत में उनका इलाज संयोजन चिकित्सा, पूरक चिकित्सा, जीवनशैली में बदलाव, केटोजेनिक आहार और अन्य आवश्यक उपायों से किया जाता है। इसके बावजूद यदि मिर्गी जारी रहती है तो संरचनात्मक असामान्यताओं, आनुवंशिक असामान्यताओं, ऑटो-प्रतिरक्षा विकारों और अन्य सिंड्रोमों की जांच की जाती है। एमआरआइ और पीइटी एमआरआइ से काफी हद तक संरचनात्मक असामान्यताओं का पता लगाया जा सकता है। संभावित आनुवांशिक, चयापचय और ऑटो-इम्यून समस्याएं सामने आने पर उपचार किया जाता है। कई मामलों में सर्जरी से संरचनात्मक असामान्यताओं को दूर किया जाता है।
न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. केनी रवीश राजीव ने बताया कि बच्चों में मिर्गी की घटना दर लगभग 3.6 फीसदी मानी जाती है। यानी 1,000 बच्चों पर 44 प्रभावित होते हैं। लगभग सात से 20 फीसदी बच्चों को दवा प्रतिरोधी मिर्गी का सामना करना पड़ रहा है। मिर्गी के कारण तीन से पांच फीसदी बाल मरीजों की मौत हो जाती है। दवा-प्रतिरोधी मिर्गी शिशुओं और छोटे बच्चों में विकासात्मक देरी और बड़े बच्चों में गंभीर विकलांगता और रुग्णता से जुड़ी हो सकती है।
Published on:
17 Nov 2023 10:39 am
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