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ज्ञान से ही भाव बदलते हैं-साध्वी भव्यगुणाश्री

धर्मसभा का आयोजन

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ज्ञान से ही भाव बदलते हैं-साध्वी भव्यगुणाश्री

ज्ञान से ही भाव बदलते हैं-साध्वी भव्यगुणाश्री

बेंगलूरु. चिंतामणि पाश्र्वनाथ जैन श्वेताम्बर चेरिटेबल ट्रस्ट महालक्ष्मी लेआउट जैन संघ में विराजित साध्वी भव्यगुणाश्री व साध्वी शीतलगुणाश्री ने कहा कि कभी-कभी मानव की सोच यह होती है कि हम ज्ञान सीखकर क्या करेंगे पर उनको इसका समाधान मिलना चाहिए कि ज्ञान से ही भाव बदलते हैं। ज्ञान से ही जीवन में परिवर्तन आएगा। ज्ञान से ही संवेग भाव बढ़ेगा। मोक्ष की अभिलाषा जागेगी, तब मोक्ष का स्वरूप भी तो जानना आवश्यक है कि मोक्ष का स्वरूप क्या है। वैसे ही नरक के बारे में स्वाध्याय करने से ज्ञान से ही उसमें नरक की वेदना के बारे में ज्ञान हुआ। नरक का वर्णन उस आगम में पढकर कोई पत्थर हृदय वाला भी कांप जाए। ये जानेंगे तभी तो हम ऐसा कोई कार्य नहीं करेंगे कि नरक गति का बंध हो। हम प्रति समय अपनी विशुद्धि बढ़ाएं। हम भगवान महावीर के कहे अनुसार अपना आचरण करें। सर्व दुखों से मुक्त होना है हमें यहां से। साध्वी ने कहा कि आगम कहते हैं विशुद्धि बढ़ाओ। मात्र आत्मविशुद्धि बढ़ाओ। क्लास में सबसे क्षमायाचना करके बैठे हैं। मन में एक उत्साह कि लहर जागृति होनी चाहिए। आगम सीखने की, ज्ञान सीखने की उत्साह की तरंगें उठनी चाहिए। अपना ज्ञान बढ़ाएं। ज्ञान से आत्मा की पहचान होगी तो तदनुरूप ही हम आचरण करेंगे। साधना को अपनाएंगे। साधना भी कौनसी, जैन धर्म की। क्योंकि जैनधर्म पूर्ण अहिंसा का पालन करता है। साधुव्रत क्यों लिया जाता है। सिर्फ और सिर्फ अहिंसा की पालना करने के लिए ज्ञान से सम्यक दृष्टि स्थिर रहती है। संवेगभाव में वृद्धि होती है। कोई विपरीत घटना घटित हो तो, संवेग भाव को उस क्षण में याद करके अशुभ भावों से बच जाएंगे। बुखार होने से क्रोसिन लेते हैं और बुखार ठीक होता है। वैसे ही आगम वाक्य आत्मा को विशुद्ध करते हैं। आगम वाक्य कर्म पुद्गलों पर प्रहार करते हैं। और धीरे धीरे जब वे टकराते हैं तो कर्म पुद्गलों से ढीले पड़ जाते हैं। नरेश बंबोरी ने बताया कि कर्नूल संघ, मदुरई,चेन्नई से गुरभक्तों ने दर्शन वंदन का लाभ लिया।