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जंबो सवारी के हाथियों का पहला दल मैसूरु पहुंचा

मैसूरु दशहरा महोत्सव की तैयारियां शुरू

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जंबो सवारी के हाथियों का पहला दल मैसूरु पहुंचा

जंबो सवारी के हाथियों का पहला दल मैसूरु पहुंचा

परंपरागत तरीके से गजपयाण के साथ ही मैसूरु दशहरा महोत्सव (Mysuru Dussehra Festival) की तैयारियों की शुरुआत शुक्रवार को हो गई। जिले के हुणसूर तालुक में नागरहोले टाइगर रिजर्व (एनटीआर) के बाहरी इलाके वीरनहोसहल्ली गेट से दशहरा महोत्सव में विजयदशमी पर निकलने वाली जंबो सवारी में भाग लेने वाले नौ हाथियों का पहला दल सुबह मैसूरु के लिए खाना हुआ और शाम तक पहुंच गया।

इससे पहले विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों के पश्चात मंत्रोच्चार के बीच हाथियों का पादपूजन, मंगल आरती, पूर्णकुंभ स्वागत किया गया। हाथियों को मोदक और पंच फल दिए गए। उसके पश्चात मैसूरु जिले के प्रभारी मंत्री एच.सी. महादेवप्पा ने हाथियों के दल को हरी झंडी दिखा कर रवाना किया।

हाथी अभिमन्यु के नेतृत्व में कंजन, अर्जुन, भीम, महेंद्र, गोपी, विजय, धनंजय और वरलक्ष्मी ने एनटीआर के वीरानाहोसल्ली गेट से अपने ट्रकों की ओर शानदार ढंग से मार्च किया। करीब आधे किलोमीटर तक हाथियों का दल पैदल चला। बाद में हाथियों को ट्रकों में मैसूरु के अरण्य भवन लाया गया। वे पांच सितंबर को मैसूरु पैलेस के जयमार्तंड गेट तक मार्च करेंगे, जहां उनका पारंपरिक रूप से स्वागत किया जाएगा। हाथियों को 26 अक्टूबर तक पैलेस परिसर में रखा जाएगा। महादेवप्पा ने कहा कि मैसूरु जिला प्रशासन ने इस साल के दशहरा के लिए 40 करोड़ रुपए का प्रस्ताव भेजा है और कम से कम 30 करोड़ रुपए की उम्मीद कर रहे हैं। वन मंत्री ईश्वर खंड्रे ने कहा कि 58 वर्षीय अभिमन्यु विजयदशमी पर जंबो सवारी जुलूस के दौरान देवी चामुंडेश्वरी की मूर्ति वाला स्वर्ण सिंहासन लेकर चलेगा। पांच हाथियों का दूसरा जत्था 15 दिनों में मैसूरु पहुंचेगा। दूसरे जत्थे में नर हाथी सुग्रीव, प्रशांत, रोहित के साथ ही मादा हाथी हिरण्य और लक्ष्मी आएंगी।


कभी पैदल आते थे हाथी
महाराजाओं के शासनकाल में जंगल के शिविरों से करीब 70-80 किमी पैदल चलकर हाथियों (elephants) का दल मैसूरु पहुंचता था। जयचामराजेंद्र वाडियार के काल में महाराजा सहित शाही परिवार के सदस्यों के पूजा के बाद हाथियों का दल रवाना होता था। बाद में कुछ सालों तक यह परंपरा बरकरार नहीं रही। वर्ष 1991 में फिर से यह सिलसिला शुरू हुआ। करीब 20 साल पहले परंपरा में बदलाव हुआ और परंपरागत तरीके से पूजा के बाद हाथी कुछ दूर चलते हैं और उसके बाद उन्हें ट्रक से ही मैसूरु लाया जाता है और वापस जंगल के शिविरों में छोड़ा जाता है।