राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) के तहत निधियों के उपयोग में 25 शहरों की सूची में बेंगलूरु सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले शहरों में है। विशेषज्ञों के अनुसार परिवहन, अपशिष्ट जलाने और डीजल सहित वायु प्रदूषण के बिखरे हुए स्थानीय स्रोतों पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है।
13 प्रतिशत का ही किया उपयोग सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसइ) द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट कहती है कि बेंगलूरु ने स्वच्छ वायु कार्यक्रम के लिए 15वें वित्त आयोग के तहत जारी अनुदान का बमुश्किल 13 प्रतिशत ही उपयोग किया।पार्टिकुलेट मैटर (पीएम 2.5) उत्सर्जन के लिए 16 शहरों का अध्ययन किया गया। शहर में वाहन 64 फीसदी पीएम 2.5 उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं। डीजल जनरेटर (डीजी) सेट ने शहर के पीएम 2.5 में 11 प्रतिशत योगदान दिया जबकि खुले में ठोस कचरे को जलाने से 10 प्रतिशत उत्सर्जन हुआ। सड़क के धूल सात प्रतिशत प्रदूषण के लिए जिम्मेदार हैं।
उत्सर्जन पर रोक नहीं स्थिति गंभीर है। पिछली गणना के अनुसार शहर में 1.2 करोड़ से ज्यादा वाहन हैं। वाहनों की विस्फोटक, अनियमित वृद्धि के बावजूद सरकार राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के तहत अनिवार्य कई उपायों को सक्रिय करने में विफल रही। शहर की कार्य योजनाएं तैयार की जानी थीं, स्रोत विभाजन अध्ययन पूरा किया जाना था, प्रदूषण हॉटस्पॉट की पहचान की जानी थी और प्रदूषण आपातकालीन प्रतिक्रिया योजना तैयार की जानी थी। लेकिन, ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।
रिपोर्ट में सड़क पर उत्सर्जन प्रबंधन, पुराने वाहनों को चरणबद्ध तरीके से हटाने, सार्वजनिक परिवहन में सुधार, विद्युतीकरण, गैर-मोटर चालित परिवहन और पार्किंग नीति के विनियमन में भी भारी अंतर पाया गया है। समन्वय की कमी
पर्यावरणविद् वी. रामप्रसाद ने बताया कि एनसीएपी के लक्षित लक्ष्यों के साथ प्रदर्शन से जुड़ी फंडिंग के लिए अनिवार्य रूप से सभी हितधारकों को समयबद्ध परिणाम दिखाने की आवश्यकता होती है। यहीं पर शहर की कई एजेंसियां कमजोर पाई गई हैं। मुख्य रूप से कर्नाटक राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (केएसपीसीबी) और बृहद बेंगलूरु महानगर पालिका (बीबीएमपी) के बीच समन्वय की कमी है।
कोई भी पूरी जिम्मेदारी नहीं ले रहा उन्होंने कहा, केएसपीसीबी और बीबीएमपी मनमानी करते हैं। शासन की कमी है। कोई निर्वाचित पार्षद और महापौर नहीं हैं। ये सभी महापौर के कार्यक्रम हैं, न कि वे जो उपमुख्यमंत्री या मुख्यमंत्री को करने चाहिए। जब तक चुनाव नहीं होते, यह चलता रहेगा। कोई भी प्रभारी नहीं है और कोई भी पूरी जिम्मेदारी नहीं ले रहा है। वे दोष बीएमटीसी, परिवहन और अन्य विभागों पर डाल देते हैं।
सफेद टॉपिंग सड़कों पर सफेद टॉपिंग से समस्या और बढ़ गई है। जब वाहन लगातार चलते हैं और लगातार ब्रेक लगाते हैं, तो धूल के कण उड़ते हैं। सड़कों की अक्सर सफाई नहीं की जाती और फुटपाथ पर धूल जम जाती है।