
महान सिद्धयोगी थे आचार्य महाप्रज्ञ
हुब्बल्ली. प्रेक्षा प्रणेता आचार्य महाप्रज्ञ के जन्म शताब्दी समारोह का शुभारंभ मुनि प्रशांत कुमार के सान्निध्य में हुआ। धर्मसभा में मुनि प्रशांत कुमार ने कहा कि आचार्य महाप्रज्ञ ने अपने जीवन में साधना, समर्पण व शिक्षा से प्रज्ञा जागृत की। वे शिशु की तरह सरल व विनम्रता की पराकाष्ठा से भावित व्यक्तित्व थे। गुरु के प्रति समर्पण भाव ने उन्हें विराट बना दिया। संस्कृत, प्राकृत व हिन्दी के ज्ञान से आचार्य महाप्रज्ञ के जीवन दर्शन का अंकन किया जा सकता है।
वे महान योगी और सिद्ध साधक थे। हमें केवल उनका गुणानुवाद ही नहीं, बल्कि उनके विचारों की अनुप्रेक्षा करनी चाहिए। सदैव ध्यान का प्रयोग करें, शब्दों से नहीं समर्पण भाव से अबदानों को जीवन में अपनाकर भावांजलि अर्पित करें। आचार्य महाप्रज्ञ का जीवन बहुआयामी रहा। वे अपने संकल्प से विकास के शिखर पर पहुंच गए। गहन साधना में उन्होंने स्वयं को नियोजित किया। उनका जीवन ही साधनामय बन गया।
महाप्रज्ञ के चिंतन में गहराई थी, बड़े-बड़े साहित्यकार उनके साहित्य से प्रभावित थे। पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम भी उनसे काफी प्रभावित थे। आगम साहित्य का संपादन कर उन्होंने साहित्य जगत में ज्ञान का भण्डार भर दिया।
इस अवसर पर मुनि कुमुद कुमार ने कहा कि आचार्य महाप्रज्ञ के साहित्य ने सैकड़ों लोगों की आदतों में बदलाव लाकर उनका जीवन बदल दिया। अहिंसा यात्रा के माध्यम से जन-जन में अहिंसा की चेतना को जागृत कर शांति का संदेश दिया। व्यक्ति के भीतर हिंसा के भाव को अहिंसा में परिवर्तन लाने के लिए प्रेक्षाध्यान का प्रयोग जनता के सामने प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम का शुभारंभ कन्या मण्डल के मंगलाचरण से हुआ। मर्यादा महोत्सव व्यवस्था समिति अध्यक्ष मोहनराम कोठारी, एरिया समिति मंत्री सुरेश कोठारी, सभाध्यक्ष महेंद्र पालगोता, तेयुप अध्यक्ष विनोद बैदमुथा एवं भाग्यवंती बागरेचा ने विचार व्यक्त किए। केसरीचंद गोलछा ने सभी का आभार जताया। संचालन महावीर कोठारी ने किया।
Published on:
01 Jul 2019 11:58 pm
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