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जीना है तो कर्म तो करना ही है-आचार्य देवेंद्रसागर

धर्मसभा का आयोजन

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जीना है तो कर्म तो करना ही है-आचार्य देवेंद्रसागर

जीना है तो कर्म तो करना ही है-आचार्य देवेंद्रसागर

बेंगलूरु. जयनगर के राजस्थान जैन संघ में विराजित आचार्य देवेंद्रसागर सूरी ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि जीना है तो कर्म तो करना ही है। चाहे प्यार से करें या फिर मन मारकर। निर्धारित कार्य को बिना कहे अपने आप करें, तो बदले में खुशी और दुआएं मिलती हैं। फिर कहते भी तो हैं कि आप करें सो देवता, कहने से करें सो मनुष्य और कहने पर भी न करें तो मनुष्य से भी बदतर। तो क्यों ना कर्म को धर्म मानकर उसे शांति और श्रद्धापूर्वक करें, ताकि हमें सबसे बड़ा धन-आत्म-संतुष्टि मिले। श्रद्धा होगी तो हमारे दुनियावी संबंध, दायित्व या दिनचर्या कभी बोझ या बंधन प्रतीत नहीं होंगे, बल्कि परमात्मा की देन और सांसारिक सेवा महसूस होंगे। हम अधिक लगन, स्फूर्ति और निष्ठा से सांसारिक कर्तव्यों का निर्वहन कर सकेंगे। कम समय में ज्यादा काम करेंगे और ज्यादा परिणाम भी पाएंगे। मगर इसके लिए अपने नजरिए में सकारात्मक बदलाव लाने की जरूरत है। जीवन को सिर्फ संघर्ष या संग्राम न समझें। समस्या या प्रतिकूल परिस्थितियों को अपना दुश्मन न मानें, बल्कि उन्हें खुद को मजबूत बनाने का सुअवसर मानें। चुनौतियों का स्वागत करें, न कि उनसे दूर भागें। विकास पथ पर आने वाली सभी बाधाओं को उन्नति की सीढ़ी समझें। उन्हें परीक्षा में आया पेपर जान कर तरक्की के मार्ग पर मील का पत्थर मानें। ऐसा नहीं करेंगे तो बाहरी परिस्थितियों को शत्रु मानेंगे, जिससे मन में हमेशा आशंका, चिंता और भय का वास रहेगा। समस्याओं के समाधान से ज्यादा उसी के चिंतन में ही सारा समय जाता रहेगा। आंतरिक शष्ठिह्म् और क्षमताएं भी कमजोर होंगी और अंत में हालात की मार से हार पाकर, दुख, कष्ट, अशांति और असफलता की राह पर चल पड़ेंगे। इसलिए, हर परिस्थिति को बस एक खेल मानें और इस खेल को अनासभाक्त भाव से ही देखें और खेलें। ऐसा किया तो जीवन उत्साह से भरा एक उत्सव बन जाएगा।