
इसरो करेगा स्पेस शटल को रन-वे पर उतारने का परीक्षण
आरएलवी के विकास के लिए इसी वर्ष जून-जुलाई में दूसरे परीक्षण की तैयारी
बेंगलूरु. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) पुन: उपयोगी प्रक्षेपण यान (आरएलवी) का दूसरा परीक्षण इसी वर्ष करेगा। स्वदेशी स्पेस शटल का यह परीक्षण बेहद महत्वपूर्ण होगा क्योंकि इस बार वह बंगाल की खाड़ी में नहीं बल्कि एक विमान की तरह रन-वे पर उतरेगा।
इसरो अध्यक्ष के. शिवन ने कहा कि रॉकेट के पहले और दूसरे चरण को फिर से हासिल कर उसका उपयोग करने के लिए आरएलवी तकनीक का विकास प्रगति पर है। यह भविष्य का रॉकेट होगा, जिससे उपग्रहों का प्रक्षेपण काफी सस्ता हो जाएगा। रॉकेट का पहला चरण हासिल करना अधिक आसान होगा। यह सागर में किसी निश्चित स्थान पर उध्र्वाधर उतर जाएगा जैसा कि स्पेसएक्स अपने रॉकेट फाल्कन के साथ कर रहा है। लेकिन, दूसरा चरण हासिल करना बेहद चुनौतीपूर्ण होगा। इसके लिए एक विंग वाले स्पेश शटल का विकास किया जा रहा है। यह स्पेश शटल रॉकेट के सबसे ऊपर जिससे उपग्रहों को पृथ्वी की कक्षा में छोड़ा जाएगा। उपग्रहों को निर्दिष्ट कक्षा में छोडक़र यह पुन: धरती का रुख करेगा और एक निश्चित हवाई पट्टी किसी विमान की तरह लैंड कर जाएगा। दूसरे चरण को पुन: हासिल करने का प्रयास दुनिया की अन्य किसी भी अंतरिक्ष एजेंसी ने अभी तक नहीं किया है।
उन्होंने बताया कि दूसरे परीक्षण में स्पेश शटल को रन-वे पर उतारा जाएगा। इसके लिए एक हेलीकॉप्टर स्पेश शटल को अंतरिक्ष में लगभग दो किलोमीटर की ऊंचाई तक ले जाएगा, जहां से उसे गिरा दिया जाएगा। इसके बाद स्पेश शटल खुद-ब-खुद धरती का रुख करेगा और एक हवाई पट्टी पर उतरेगा। यह परीक्षण इसी वर्ष जून या जुलाई महीने में होने की उम्मीद है। इसरो के उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक स्पेश शटल की लैंडिंग के लिए रन-वे अंडमान-निकोबार या श्रीहरिकोटा में निर्मित किया जा सकता है। यह लगभग 5 किलोमीटर लंबा रन-वे होगा। अगले परीक्षण में आरएलवी अंतरिक्ष से लौटने के बाद उस रन-वे पर उतरेगा। आरएलवी के पहले तकनीकी प्रदर्शन उड़ान में स्पेस शटल अंतरिक्ष से लौटने के बाद श्रीहरिकोटा से लगभग 450 किलोमीटर बंगाल की खाड़ी में उतरा और बिखर गया। आरएलवी के पहले परीक्षण से काफी उपयोगी आंकड़े मिले हैं जिनके विश्लेषण के आधार पर दूसरे परीक्षण को पूरा किया जाएगा। यह परियोजना वर्ष 2003 में शुरू की गई थी और उम्मीद है कि अगले 10 से 15 साल में पूर्ण विकसित स्वदेशी स्पेस शटल उड़ान भरने लगेगा।
अंतरिक्ष यानों का धरती के वातावरण में पुन: प्रवेश बेहद चुनौतीपूर्ण होता है। धरती के वातावरण में प्रवेश के वक्त यान की गति ध्वनि की गति से पांच गुणा अधिक होती है और हवा के घर्षण से उत्पन्न भीषण ऊष्मा से यान को बचाना होता है। वहीं धरती पर उतरते वक्त असीम ऊर्जा को नष्ट करना होता है ताकि वह बिखरे नहीं और पूर्व निर्धारित रन-वे पर सुरक्षित लैंड कर सके।
इसरो के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार भविष्य में उपग्रह प्रक्षेपण की मांग काफी बढ़ जाएगी और ऐसी स्थिति में आरएलवी बेहद उपयोगी साबित होगा। आरएलवी के पूर्ण विकासित होने के बाद उपग्रहों के प्रक्षेपण में निरंतरता आएगी क्योंकि उपग्रहों को अंतरिक्ष में स्थापित करने के बाद आरएलवी पुन: धरती पर लौट आएगा और काफी कम समय में अगला उड़ान भरने के लिए तैयार होगा।
Published on:
16 Jan 2019 04:26 pm
बड़ी खबरें
View Allबैंगलोर
कर्नाटक
ट्रेंडिंग
