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मानसून सत्र का विस्तार करें नेता प्रतिपक्ष की मांग

सदन में बहस को टालकर कई अध्यादेश जारी करना लोकतंत्र का अपमान

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मानसून सत्र का विस्तार करें नेता प्रतिपक्ष की मांग

मानसून सत्र का विस्तार करें नेता प्रतिपक्ष की मांग

बेंगलूरु.विपक्ष कोरोना महामारी का संकट, प्राकृतिक आपदा समेत राज्य की कई गंभीर समस्याओं को लेकर सदन में बहस करना चाहता है।लिहाजा मानसून सत्र के लिए निर्धारित केवल आठ दिनों का समय काफी कम होने के कारण इस सत्र का 25 अक्टूबर तक विस्तार किया जाना चाहिए।

विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष सिद्धरामय्या ने यह मांग रखी मुख्यमंत्री बीएस येडियूरप्पा तथा विधानसभाध्यक्ष विश्वेश्वर हेगडे कागेरी को लिखे पत्र में उन्होंने कहा है कि विधानसभाध्यक्ष के कार्यालय की ओर से मिली जानकारी के अनुसार राज्य सरकार इस सत्र में 35 विधेयक तथा 20अध्यादेश सदन की मंजूरी के लिए पेश करना चाहती है।

उन्होंने कहा कि इसमे कर्नाटक भूमि सूधार कानून संशोधित विधेयक, कृषि उपज बाजार समिति संशोधित विधेयक समेत कृषि तथा किसानों से संबधित कई महत्वपूर्ण विधेयक भी शामिल है ऐसे दूरगामी परिणामों वाले विधेयको आनन-फानन में पारित नहीं किया जा सकता है।लिहाजा इन विधेयकों को लेकर सदन में मुक्त बहस सुनिश्चित करने के लिए सत्र का कार्यकाल विस्तारित करना अनिवार्य है। राज्य में प्राकृतिक आपदाओं के कारण कई जिलों में अभी तक जनजीवन पटरी पर नहीं लौटा है। लॉकडाउन के कारण हर क्षेत्र प्रभावित हुआ है।

वित्तीय मंदी के कारण हर क्षेत्र में रौनक नदारद होने के कारण इस समस्या को निपटने के लिए कारगर योजनाओं की आवश्यकता है।राज्य में मादक पदार्थों का कारोबार फल फूल रहा है।कानून व्यवस्था चरमरा रही है।विपक्ष ऐसी समस्याओं को लेकर राज्य सरकार से स्पष्टिकरण चाहता है।लेकिन इसके लिए सत्र की कार्यकाल पर्याप्त नहीं है। अगर राज्य सरकार वास्तविक रूप से इन समस्याओं के प्रति गंभीर है तो सरकार को बहस से भागने के प्रयास नहीं करते हुए केवल रस्मअदायगी के लिए महज 8-10 दिनों का सत्र बूलाने के बदले इस सत्र का विस्तार कर इन समस्याओं के समाधान के लिए प्रशासनिक संकल्प का परिचय देना चाहिए।

सदन में बहस को टालकर कई अध्यादेश जारी करना लोकतंत्र का सरासर अपमान है।लोकतंत्र केवल अध्यादेश जारी कर प्रशासन नहीं चलाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि कर्नाटक राज्य विधान मंडल कार्यवाही निर्वहन अधिनियम 2005 के तहत विधानमंडल के बजट,मानसून तथा शीतकालीन तीनों सत्रों के दौरान 60 बैठकें होना अनिवार्य है। इसी अधिनियम के तहत प्रति वर्ष चार सत्रों का आयोजन की बात कही गई है। लेकिन राज्य सरकार इस अधिनियम का सरासर उल्लंघन कर रही है।