
लक्ष्य को पहचानने से ही मानवजीवन की सार्थकता-देवेंद्रसागर
बेंगलूरु. आचार्य देवेंद्रसागर ने जयनगर स्थित जैन मंदिर में प्रवचन के दौरान कहा कि जीवन में केवल पाना नहीं होता, खोना भी होता है, आए हैं तो जाना भी है, जीवन का यह क्रम जारी रहेगा। याद रखिए जिन्होंने कभी मीठे शब्द कहे, वह कभी न कभी कड़वा भी बोलेंगे, मान देने वाला, अपमान भी करेगा। मनुष्य जल्दी समझता नहीं, विश्वास नहीं करता कि मेरा बेटा, मेरी बहू, मेरा भाई या मेरे संगी-साथी कभी मेरे आगे बोल जाएं, हो ही नहीं सकता। लेकिन ऐसा समझना गलत है। संसार अपने हिसाब से चलता है, अपने स्वार्थों के हिसाब से व्यक्ति को तोलता है। संसार आपको छोड़े उससे पहले मन बना लीजिए कि आप स्वयं छोड़ सकें। आसक्ति-अनासक्ति साथ-साथ चले। इतनी शक्ति पैदा कीजिए कि जब जहां से मन हटाना है तो फिर ध्यान उधर जा ही न पाए। जहां संसार से सम्बन्ध जोड़ते हैं, वहां से ध्यान हटाना भी सीखिए। आचार्य ने कहा जो समय सत्संग-सेवा में बीता, वह निरर्थक नहीं जाएगा। जन्म जन्मान्तर तक भी काम आएगा। सत्संग से मन में पवित्रता आती है, दृष्टि सात्विक होती है। सत्संग से चार फल प्राप्त होते हैं। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। सत्य को जानो, जो सदा है - नित्य है, उसे जानने के लिए किसी का संग करना। ऐसे जीव से जैसे-तैसे बने रिश्ता जोड़ो, जो परमात्मा का रास्ता बताए। जो जीवन के उद्देश्य की प्राप्ति में सुविधा दे, जिसके मिलने से भक्ति-भाव बढ़ जाए, ऐसे लोगों के साथ बैठें। उन्होंने कहा कि अच्छे लोगों के साथ बैठें, अच्छी चर्चाओं में बैठें, सात्विक वातावरण मिलना बहुत जरूरी है। पूरी लंका में एक विभीषण बैठा राम का नाम जप रहा था, वह सुरक्षित रहा, पर यह बहुत कठिन होता है। अच्छे लोगों का साथ मिल जाए तो ‘रंग में भंग’ डालने वाले, भावना को बिगाडऩे वाले लोगों को बाहर निकालना चाहिए।
जैसे किसानों के लिए बीज बोने का समय आता है, ऐसे नाम जपने वाले मिलें तो लगता है नाम जपने का मौसम आ गया। जिनके साथ रहने से भक्ति का रंग लगता है, उनसे मित्रता करके इक_े बैठें। सारी दुनिया सोई है, उस समय उठ कर कोई परमात्मा का नाम जिव्हा पर बसा लें, तो उसका जागना सफल है। जो सोए हैं, उनकी आलोचना में लग जाना पाप है। किस्मत वाले लोग होते हैं, जिनके नाम जपनेमें सहयोगी लोग मिल जाएं।
Published on:
29 Nov 2019 04:25 pm
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