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पर्युषण का अर्थ-कर्मों का नाश करना-आचार्य देवेन्द्रसागर

पर्युषण पर्व आज से

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पर्युषण का अर्थ-कर्मों का नाश करना-आचार्य देवेन्द्रसागर

पर्युषण का अर्थ-कर्मों का नाश करना-आचार्य देवेन्द्रसागर

बेंगलूरु. जयनगर के राजस्थान जैन मूर्तिपूजक संघ में विराजित आचार्य देवेंद्रसागर सूरी ने पर्युषण पर्व के एक दिन पूर्व पर्व की महत्ता बताते हुए कहा कि जैन समाज का सबसे पावन त्योहार पर्युषण पर्व शुक्रवार से शुरू होगा। पर्युषण पर्व जैन समाज में सबसे बड़ा पर्व माना जाता है, इसलिए इसे पर्वाधिराज भी कहते हैं। पर्युषण का सामान्य अर्थ है मन के सभी विकारों का शमन करना, यानी अपने मन में उठने वाले हर तरह के बुरे विचार को इस पर्व के दौरान समाप्त करने का व्रत ही पर्युषण महापर्व। यह पर्व महावीर स्वामी के मूल सिद्धांत अहिंसा परमो धर्म, जिओ और जीने दो की राह पर चलना सिखाता है तथा मोक्ष प्राप्ति के द्वार खोलता है। पर्युषण पर्व का शाब्दिक अर्थ है-आत्मा में अवस्थित होना। पर्युषण का एक अर्थ है- कर्मों का नाश करना। कर्मरूपी शत्रुओं का नाश होगा तभी आत्मा अपने स्वरूप में अवस्थित होगी अत: यह पर्युषण-पर्व आत्मा का आत्मा में निवास करने की प्रेरणा देता है।
आचार्य ने कहा कि इसे आत्मशोधन का पर्व भी कहा गया है, जिसमें तप कर कर्मों की निर्जरा कर अपनी काया को निर्मल बनाया जा सकता है। पर्युषण पर्व को आध्यात्मिक दीवाली की भी संज्ञा दी गई है। जिस तरह दीवाली पर व्यापारी अपने संपूर्ण वर्ष का आय-व्यय का पूरा हिसाब करते हैं, गृहस्थ अपने घरों की साफ-सफाई करते हैं, ठीक उसी तरह पर्युषण पर्व के आने पर जैन धर्म को मानने वाले लोग अपने वर्ष भर के पुण्य पाप का पूरा हिसाब करते हैं। वे अपनी आत्मा पर लगे कर्म रूपी मैल की साफ-सफाई करते हैं। पर्युषण महापर्व मात्र जैनों का पर्व नहीं है, यह एक सार्वभौम पर्व है।