
जैन धर्म में स्नात्र पूजा का विशिष्ट महत्व-आचार्य देवेन्द्र सागर
बेंगलूरु. जयनगर के राजस्थान जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक मंदिर में समाज के श्रद्धालुओं को संस्कृ ति एवं सभ्यता से जोडऩे के लिए प्रति रविवार को विभिन्न आयोजन किए जाते हैं। इसी क्रम में रविवार को आचार्य देवेंद्रसागर सूरी की निश्रा में धर्मनाथ जैन मंदिर परिसर में स्नात्र महोत्सव का आयोजन किया गया। इसमें बड़ी संख्या में लोगों ने भाग लिया एवं श्रद्धालुओं ने स्नात्र पूजा का महत्व जाना व अष्ट प्रकारी पूजा अर्चना की। इसमें पुष्प पूजा, फल पूजा, केसर पूजा, धूप पूजा, दीप पूजा सहित विभिन्न पूजा की। उपस्थित श्रद्धालुओं को स्नात्र पूजा का महत्व बताते हुए आचार्य देवेन्द्रसागर ने कहा कि यह परमात्मा का अभिषेक होता है। इससे विभिन्न प्रकार के लाभ मिलते हैं। विद्या एवं धन की प्राप्ति होती है एवं परमात्मा से आत्मीय जुड़ाव होता है। जैन धर्म की सभी पूजाओं में इसका अत्यंत विशिष्ट स्थान है एवं सभी पूजाओं से पहले इसे आवश्यक रूप से पढ़ाया जाता है। दुर्भाग्यवश आज लोग इसके महत्व को भूलने लगे हैं। उन्होंने कहा कि जब तीर्थंकर परमात्मा का जन्म होता है तब इन्द्रादिक देव मिलकर उन्हें मेरु पर्वत पर ले जाकर अभिषेक करते हैं। इसी क्रिया का पुनरावर्तन ही स्नात्र पूजा है। यह पूजा जिनेश्वर भगवान के प्रति हमारे सम्मान और भक्ति को व्यक्त करने का एक माध्यम है। भक्ति ही एकमात्र सरल और आसान मार्ग है, जिससे मोक्ष या मुक्ति प्राप्त होती है। आचार्य ने कहा कि जिस प्रकार हर काम के करने की एक विधि होती है एक तरीका होता है। उसी प्रकार पूजा की भी विधियां होती हैं। क्योंकि पूजा का क्षेत्र भी धर्म के क्षेत्र जितना ही व्यापक है। हर धर्म, हर क्षेत्र की संस्कृति के अनुसार ही वहां की पूजा विधियां भी होती हैं। जिस प्रकार गलत तरीके से किया गया कोई भी कार्य फलदायी नहीं होता, उसी प्रकार गलत विधि से की गई पूजा भी निष्फल होती है।
Published on:
23 Aug 2021 08:59 am
बड़ी खबरें
View Allबैंगलोर
कर्नाटक
ट्रेंडिंग
