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तपस्या पाप-विकारों को दूर करने का अमोघ उपाय : आचार्य विमलसागर

चामराजपेट में सामूहिक तप साधना

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बेंगलूरु. चामराजपेट में आचार्य विमलसागरसूरी एवं गणि पद्मविमलसागर के सान्निध्य में सामूहिक तप साधना का आयोजन किया गया। आठ दिन के निराहार उपवास करने के संकल्प के साथ 477 साधक इस सामूहिक साधना में जुड़े हैं।शीतलनाथ जैन श्वेताम्बर मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष मनसुखलाल खीचा ने बताया कि मंगलवार को शीतल-बुद्धि-वीर वाटिका में विशाल धर्मसभा में मंत्रोच्चार पूर्वक सभी तपस्वियों ने उपवास के संकल्प लिए। लाभार्थी भंसाली परिवार ने उनको अभिमंत्रित श्रीफल अर्पित किए। गणि पद्मविमलसागर व सहवर्ती मुनियों ने समवेत स्वर में स्तोत्रपाठ कर अभिमंत्रित जल व अक्षत का विधान किया। सकल संघ ने तपस्वियों को बधाया।

इस अवसर पर आचार्य विमलसागरसूरी ने कहा कि जैन परंपरा में प्रातः 10 बजे से शाम 6 बजे के बीच सिर्फ उबाला हुआ पानी ग्रहण करने के अलावा समस्त खाद्य सामग्री का संपूर्ण परित्याग कर उपवास की साधना की जाती है। भगवान महावीरस्वामी ने अपने जीवनकाल में करीब साढ़े बारह वर्ष तक कठोर तपस्या की थी। मुगलकाल में दिल्ली की निवासी श्राविका चंपाबाई ने निरंतर 180 दिन के ऐसे उपवास कर सम्राट अकबर को आश्चर्यचकित कर दिया था।

जैनाचार्य ने कहा कि जैन शास्त्रों में तपस्या को सभी आराधनाओं-उपासनाओं में सर्वाधिक महत्वपूर्ण कहा है। तप जन्मोजन्म के पाप-विकारों को दूर करने का अमोघ उपाय है। लाखों श्रद्धालु प्रतिवर्ष यथाशक्ति ऐसी साधना करते हैं।