
बेंगलूरु . आचार्य विमलसागर सूरीश्वर ने कहा कि जो मनोवृत्ति में नहीं होता और उसे प्रवृत्ति में लाया जाता है, तो ऐसा आचरण पाखंड बन जाता है। इस प्रकार की साधना-आराधना जीवंत नहीं होती। इसलिए गतानुगतिक धर्म-आराधना या व्रत-उपासना करने का कोई विशेष महत्व नहीं है। मनोवृत्तियों को बदलने का ध्येय सदैव प्रबल होना चाहिए। जो मनोवृत्तियों को नहीं बदलते या मनपूर्वक साधना नहीं करते, ऐसे लोग धर्म को जड़ता पूर्वक जकड़ लेते हैं। उनका धर्म सिर्फ आदतन बन जाता है।
चामराजपेट स्थित शीतल-बुद्धि-वीर वाटिका में धर्मसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि वास्तव में धर्म तो सरल-तरल, निर्मल, निर्विवाद, शांति, सद्भाव और सदाचरण का द्योतक होता है। जो धर्म के नाम पर जड़, जिद्दी, कट्टर या हिंसक बन जाते हैं, वे दरअसल धर्म नहीं, अधर्म का आचरण करते हैं। ऐसे लोग ही धर्म के नाम पर ज्यादतियां करते हैं। वे अपने मन, स्वभाव और जीवन आचरण को नहीं बदलते, वे तो अपने मन मुताबिक धर्म के अर्थ बदलकर दुनिया बदलना चाहते हैं। जैनाचार्य ने कहा कि कुवृत्तियां अगर बदलती हैं तो जीवन आचरण में उसकी स्पष्ट प्रतीति होगी। वही धर्म-आराधना का ध्येय होना चाहिये।
Updated on:
26 Aug 2023 02:12 pm
Published on:
26 Aug 2023 02:11 pm
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