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सच्चे सुख का एक मात्र साधन-सम्यक ज्ञान

धर्मसभा में बोले आचार्य देवेन्द्र सागर

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सच्चे सुख का एक मात्र साधन-सम्यक ज्ञान

सच्चे सुख का एक मात्र साधन-सम्यक ज्ञान

बेंगलूरु. आचार्य देवेंद्रसागर ने नवपद ओली पर्व के सातवें दिन सम्यक ज्ञान के पर प्रवचन दिया। उन्होंने कहा कि भगवान महावीर ने सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान और सम्यक चारित्र को मोक्ष का मार्ग बताया है। दर्शन के बिना ज्ञान नहीं होगा व ज्ञान के बिना चारित्र नहीं होगा। जो पदार्थ जैसा है, उसे वैसे को वैसा ही जानना, न कम जानना,न अधिक जानना और न विपरीत जानना - जो ऐसा बोध कराता है, वह सम्यक ज्ञान है। सम्यक ज्ञान व सम्यक दर्शन में अन्तर है। ज्ञान का अर्थ जानना है और दर्शन का अर्थ मानना है। इसलिए बिना सम्यक दर्शन के सम्यक ज्ञान नहीं हो सकता है। जिस प्रकार नींव के बिना मकान का महत्व नहीं, उसी प्रकार सम्यकदर्शन के बिना संसारी आत्माओं का महत्व नहीं। आचार्य आगे बोले की मनुष्य के लिये विद्या और अविद्या दोनों आवश्यक हैं। दुनिया में हजारों प्रकार के शास्त्र और हजारों प्रकार का ज्ञान है। उन सबकी प्राप्ति में पड़ेंगे तो हमसे कोई काम नहीं होगा। संसार में इतना ज्ञान भरा पड़ा है कि उन सबको अपने मस्तिष्क में ठूंसने का यत्न करने से मानव पागल हो जाएगा। हर ज्ञान प्राप्त करना ठीक नहीं। जिस ज्ञान की स्वधर्माचरण में कोई आवश्यकता नहीं, जिससे बुद्धिभेद होता है, उस ज्ञान का चित्त पर बोझ नहीं डालना चाहिए। उसकी अविद्या ही रहने दी जाए।
उन्होंने कहा कि ज्ञान एक शक्ति है। लेकिन शक्ति से ज्ञान नहीं आता है। ज्ञान "अनुभव या अध्ययन से प्राप्त जागरूकता" या समझ की स्थिति है। किसी चीज़ के बारे में विशिष्ट जानकारी सीखना ही ज्ञान है। लोगों के लिये ज्ञान एक शक्ति का साधन है। ज्ञान को इस दुनिया में कोई हरा नहीं सकता है। लोगों की समझदारी ज्ञान पर निर्भर करती है पर एक ज्ञान ही है जो लोगों को समाज में रहने की शक्ति प्रदान करता है।