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मिर्गी के दो-तिहाई मरीजों का उपचार संभव : निम्हांस

- जागरूकता की कमी और भ्रांतियां अब भी बाधा

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मिर्गी के दो-तिहाई मरीजों का उपचार संभव : निम्हांस

मिर्गी के दो-तिहाई मरीजों का उपचार संभव : निम्हांस

बेंगलूरु. राष्ट्रीय मानसिक आरोग्य व स्नायु विज्ञान संस्थान (निम्हांस) ने सोमवार को मिर्गी (Epilepsy - एपिलेप्सी) दिवस पर विभिन्न जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन किया। ओपीडी परिसर में मिर्गी के बारे में पोस्टर और शैक्षिक सामग्री प्रदर्शित की।

निम्हांस (Nimhans) के निदेशक डॉ. जी. गुरुराज ने बताया कि मिर्गी सबसे आम न्यूरोलॉजिकल विकार है। दो-तिहाई मिर्गी के मामलों का उपचार संभव है। दो से तीन वर्ष तक नियमित दवा लेने से मिर्गी पूरी तरह ठीक हो सकती है। जागरूकता की कमी और मिर्गी से जुड़ी प्रचलित भ्रांतियां अब भी उपचार में बाधा हैं। पुराने वक्त से ही भ्रांतियां फैली हुईं हैं कि झाड़-फूंक से मिर्गी ठीक हो सकती है। लेकिन ऐसा नहीं है। मिर्गी को लेकर कई तरह की गलतफमियां हैं। एक अनुमान के अनुसार विश्व में करीब सात करोड़ और भारत में 1.2 करोड़ से ज्यादा मिर्गी के मरीज हैं। मिर्गी का उपचार संभव है बशर्ते समय पर इसकी पहचान और उपचार हो। प्रदेश में तालुक स्तर पर उपचार उपलब्ध है। लोगों को चाहिए कि समय रहते चिकित्सकीय परामर्श लें और उपचार शुरू करें।

चिकित्सकों ने बताया कि मिर्गी के मरीज के मस्तिष्क में असामान्य तरंगें पैदा होने लगती हैं। यह कुछ वैसा ही जैैसे कि शॉर्ट सर्किट में दो तारों के बीच गलत दिशा में तेज करंट दौड़ता है। इसमें मरीज को झटका महसूस होता है, वह जमीन पर गिर जाता है, दांत भिंच जाते हैं और वह कुछ देर के लिए बेहोश हो जाता है।

मस्तिष्क में सूचनाओं के आदान-प्रदान के दौरान विद्युत प्रवाह अचानक असामान्य रूप से बढ़ जाए तो मांसपेशियों में अनियंत्रित हरकतें दिखने लगती हैं। इसे फिट आना या सीजर कहते हैं। बार-बार सीजर आने से यह मिर्गी का रूप धारण कर लेता है। एक दिन के बच्चे से लेकर सौ साल के बुजुर्ग तक को मिर्गी हो सकती है।

कन्वल्सन को न समझें मिर्गी

बेंगलूरु. ब्रेन्स अस्पताल के प्रमुख न्यूरोसर्जन डॉ. एन. के. वेंकटरमन ने बताया कि बच्चों में मिर्गी आम है। इसके कई कारण हैं। दो से ज्यादा बार दौरा पड़े तो मिर्गी की आशंका होती है नहीं तो ऐसे मामले कन्वल्सन के होते हैं। कन्वल्सन और एपिलेप्सी के लक्षण एक जैसे होते हैं। लेकिन दोनों बीमारियां एक-दूसरे से अलग हैं। हिस्टीरिया मानसिक बीमारी है जबकि मिर्गी दिमागी बीमारी है।

दोनों के इलाज के तरीके अलग-अलग हैं। इसलिए दोनों को एक समझने की गलती न करें। लक्षण के आधार पर मिर्गी को तीन से चार वर्गों में बांटा गया है। कुछ तरह की मिर्गी कुछ वर्ष दवा खाने पर ठीक हो जाती हैं जबकि कुछ में पूरी जिंदगी दवा खानी होती है। अगर किसी को पहली बार दौरा पड़ा है तो दोबारा पडऩे की आशंका 50 फीसदी तक होती है। अगर दूसरी बार दौरा पड़ा है तो भविष्य में इसकी आशंका 75 फीसदी तक होती है। किसी को दौरा पड़ा है तो दूसरी बार दौरा पडऩे का इंतजार न करें।