निकट अंतरिक्ष में ऐसे लगभग 30 हजार अंतरिक्षीय मलबे हैं जो ऑपरेशनल उपग्रहों के साथ-साथ भविष्य के मिशन के लिए चुनौती बनते हैं। इन कचरों पर इसरो की नव गठित इकाई आईएस4ओएम (सुरक्षित और संधारणीय अंतरिक्ष संचालन प्रबंधन के लिए इसरो प्रणाली) और अमरीका स्पेस कमांड नजर रखते हैं। पीएसएलवी सी-37 के ऊपरी हिस्से की भी नियमित रूप से निगरानी की गई और इसकी कक्षीय ऊंचाई को धीरे-धीरे कम किया गया। अक्टूबर के पहले सप्ताह में इस मलबे की कक्षीय ऊंचाई गिरकर 134 किमी गुणा 148 किमी हो गई। इसके बाद यह 6 अक्टूबर को पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश कर गया।
इसरो ने कहा है कि, 8 साल के भीतर इस मलबे का निपटान कर दिया गया। अमूमन ऐसे मलबे वर्षों तक अंतरिक्ष में चक्कर काटते रहते हैं। लेकिन, इसरो ने अंतरराष्ट्रीय मलबा शमन दिशा-निर्देशों खासकर, अंतर-एजेंसी अंतरिक्ष मलबा समन्वय समिति (आइएडीसी) के दिशा-निर्देशों के मुताबिक समय से पहले ऐसे मलबों का निपटान कर देता है। अंतरराष्ट्रीय दिशा-निर्देशों के मुताबिक ऐसे निष्क्रिय मलबों का जीवनकाल 25 साल से अधिक नहीं होना चाहिए। इसरो ने कहा है कि, पीएसएलवी सी-38, पीएसएलवी सी-40, पीएसएलवी सी-43, पीएसएलवी सी-56 और पीएसएलवी सी-58 के आर्बिट को भी घटाया गया है। इनके ऊपरी हिस्से भी तय समय सीमा से काफी पहले निकट अंतरिक्ष से हटा दिए जाएंगे। इसरो ने बाह्य अंतरिक्ष गतिविधियों की दीर्घकालिक स्थिरता को बनाए रखने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराते हुए वर्ष 2030 तक मलबा मुक्त अंतरिक्ष मिशन लांच करने की योजना बनाई है।