
मैसूरु. स्थानकवासी जैन संघ के तत्त्वावधान में डॉ. समकित मुनि ने गुरुवार को ठानांग सूत्र में वर्णित 6 प्रकार के बोलों की व्याख्या करते हुए कहा कि हमेशा सत्य, लेकिन विवेक के साथ बोलें, आदरपूर्वक बोलें, झिड़कने वाली बोली न बोलें, सोच विचार करके बोलें तथा गड़े हुए मुर्दों को उखाड़ें नहीं यानी बीती बात को दोहराएं नहीं।
उन्होंने कहा कि वाणी का सदुपयोग करना चाहिए क्योंकि बोलते-बोलते कर्मों की निर्जरा भी हो सकती है और कर्मों के बंधन भी हो सकते हैं। सत्वपूर्ण बोली से ज्ञानावरणीय कर्म खपते हैं, विवेकपूर्ण बोली से दर्शनवरणीय कर्म खपते हैं। निष्पक्ष बोलने से मोहनीय कर्म की निर्जरा होती है। शुभ भावना आने से दीर्घायु का बंधन होता है।
मधुर एवं प्रिय बोली से अशुभ कर्म की निर्जरा होती है। आदर व सम्मानपूर्वक बोलने से उच्च गोत्र का बंधन होता है। विघ्न बाधाएं डालने से अंतराय कर्म का बंधन होता है। तपस्या एवं सत्कर्म की अनुमोदना से कर्मों की निर्जरा होती है। भवांत मुनि ने दीर्घा तपस्या करने वाले तपस्वियों के प्रति मंगलकामनाएं प्रस्तुत की। जयवंत मुनि ने प्रारम्भ में गीतिका प्रस्तुत की। संघ अध्यक्ष कैलाशचंद बोहरा ने स्वागत किया। गुरुदेव रूपचंद एवं विनय मुनि के स्वास्थ्य लाभ के लिए सामूहिक नमस्कार मंत्र का जाप किया। साहूकारपेट चेन्नई के कन्हैयालाल मुथा का अभिनन्दन किया।
आलस्य जीवन का शत्रु
चामराजनगर. गुंडलपेट स्थानक में साध्वी साक्षी ज्योति ने कहा कि आलस्य जीवन का भयंकर शत्रु है। मानव ने समय की बचत करना अच्छी तरह से सीख लिया है, समय का सदुपयोग करना भी सीख जाएं तो वह उच्च कोटि का साधक बन सकता है। इंसान का अधिक समय बोलने, खाने व सोने में जाता है, चाहे हजारों वर्षों की उम्र भी मिल जाए तब भी वह ठीक ढंग से साधना नहीं कर सकता है। समय देकर व्यक्ति पैसा प्राप्त कर सकता है मगर पैसे से समय नहीं खरीद सकता।
Published on:
03 Aug 2018 06:18 pm
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