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राजस्थान में इस शहर के पत्थरों से तराशे बर्तनों की दीवाने हुए विदेशी, खूब हो रही डिमांड

धातुओं, मिट्टी और प्लास्टिक के आकर्षक बर्तनों ने गढ़ी कस्बे में दशकों से पत्थरों को हाथों से गढक़र तैयार किए जा रहे खूबसूरत बर्तनों की मांग भले ही स्थानीय बाजार में कम कर दी हो, मगर ये हस्तशिल्प उत्पाद विदेशियों को खूब पसंद आ रहे हैं।

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धर्मवीर सिंह चौहान
गढ़ी (बांसवाड़ा). धातुओं, मिट्टी और प्लास्टिक के आकर्षक बर्तनों ने गढ़ी कस्बे में दशकों से पत्थरों को हाथों से गढक़र तैयार किए जा रहे खूबसूरत बर्तनों की मांग भले ही स्थानीय बाजार में कम कर दी हो, मगर ये हस्तशिल्प उत्पाद विदेशियों को खूब पसंद आ रहे हैं। राजस्थान में आते देसी-विदेशी पर्यटकों के अलावा विदेशों तक इन बर्तनों की मांग है।

परतापुर-गढ़ी नगरपालिका क्षेत्र के संतपुरा मोहल्ले के डेढ़ दर्जन डोडियार परिवार पत्थरों पर नक्काशी और गढ़ाई कर कर मूर्तियां, सिरा पत्थर, बर्तन और साज-सज्जा के आयटम तैयार कर रहे हैं। स्थानीय बाजार में सिरा पत्थर की मांग अधिक होती है, जबकि कुछ वर्षों पहले तक पत्थर के बर्तनों की भरपूर मांग थी। अब धीरे-धीरे कम हो गई। इसके विपरीत विदेशों में पत्थर के बर्तन खूब बिक रहे हैं। यहां तैयार बर्तन व साज-सज्जा का सामान ज्यादातर जोधपुर के कारोबारी खरीद ले जाते हैं। वहां उन्हें और ज्यादा चमकाकर विदेशों में भेजा जाता है। जोधपुर, जयपुर और उदयपुर जैसे पर्यटन शहरों में हैंडीक्राफ्ट के शोरूम से भी विदेशी सैलानी इन्हें ऊंचे दामों पर खरीदते हैं।

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मुनाफा कम होने से घटे कारीगर
25 साल पूर्व परतापुर के मजरा पारड़ा, टेंबा मोहल्ला, समाधि डूंगरी, संतपुरा, लांबी डूंगरी और सिंधुर खोता मोहल्लों के कई आदिवासी परिवार हस्तशिल्प से जुड़े हुए थे। परतापुर से 35 किमी दूर तलवाड़ा व बजवाना के आसपास से पत्थर लाकर तैयार किए बर्तनों की स्थानीय क्षेत्र में खपत थी। धीरे-धीरे पत्थर नहीं मिलने और मुनाफा कम होने से कई परिवारों ने काम छोड़ दिया। अब केवल संतपुरा मोहल्ले के 20 परिवारों के 40-50 लोग ही इस हस्तशिल्प कला को जिन्दा रखे हुए हैं। वे पालोदा से पत्थर लाकर तराशते हैं।

  • पत्थर के ये उत्पादन हो रहे तैयारसिरा पत्थर से काकर सिरा, चोखली सिरा, मूर्तियां, बर्तनों में परात, खरेल, पाटला, कटोरी-कटोरे, सजावटी आयटम में चौरस प्लेट, लम चौरस प्लेट, फूल, फूलदान, रेतीली जमीन पर टेंट बांधने के बाट और अन्य कई आइटम अलग-अलग आकृति और आकार में बनाए जा रहे हैं। ऑर्डर पर दी गई डिजाइन के अनुसार भी आयटम तैयार करते हैं। जितनी मेहनत उतना मुनाफा नहींसंतपुरा के कारीगर बताते हैं कि यह पुश्तैनी कार्य है, इसलिए कर रहे हैं, वर्ना जितनी मेहनत, बिजली की खपत, मशीनरी पर खर्च, पत्थर परिवहन किराया और सेहत को नुकसान के पैमाने पर आंकें तो मुनाफा बेहद कम मिलता है। पूरे माह मेहनत करने पर करीब 15 से 20 हजार रुपए मिलते हैं। इससे केवल घर खर्च चलता है।

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हस्तशिल्पकारों का दर्द
सरकार से अगर आर्थिक मदद मिले, भूमि आवंटन हो तो बड़ी मशीनें लगाकर इस शिल्प कारोबार को बढ़ाया भी जा सकता है। फिनिशिंग और पॉलिश भी यहीं हो तो स्थानीय कारीगरों को अच्छा दाम मिलेगा। युवाओं की रुचि भी बढ़ेगी।
कन्हैयालाल डोडियार, हस्तशिल्पकार

आज करीब 20 परिवार ही काम कर रहे हैं। और अधिक परिवार इस काम में जुटें, युवा पीढ़ी नक्काशी सीखें तो और अधिक माल तैयार हो सकता है। बाजार की मांग पूरी करने के लिए संसाधन सीमित हैं।
भरत डोडियार, कारीगर


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