
बांसवाड़ा. गांव और शहर की सडक़ों पर टैम्पो की दौड़ पूरी तरह बेलगाम है। टैम्पो में क्षमता से ज्यादा सवारियां ढोने का तो जैसे इन्हें अधिकार ही मिल गया है। बांसवाड़ा ऐसा बिरला शहर है जहां चालक सीट पर तीन, चार और पांच सवारियां बिठाने का रिवाज बन गया है। न कोई रोकने वाला है और न टोंकने वाला है। कुछ पैसों के चक्कर में यह टैम्पो चालक बिना किसी डर के क्षमता से ज्यादा सवारियां न सिर्फ टैम्पो में बल्कि ड्राइवर सीट पर भी बैठा लेते है।
जिनमें से दोनों तरफ से सवारियों का आधा शरीर तो टैम्पो से बाहर ही निकला रहता है। जिससे हादसे की आशंका बनी रहती है। फिर इनकी रफ्तार पर भी कोई लगाम नहीं है। लोग मौत के मुंह में जाएं तो जाएं। न मनमाने तरीके से खड़े होने पर किसी की निगाह है। जहां चाहा रोका, जहां चाहा खड़ा किया और जहां चाहा सवारी उतारी। बुधवार को जब पत्रिका टीम ने शहर की सडक़ों पर टैम्पो की इन गतिविधियों पर निगरानी रखी तो हालात ङ्क्षचता में डालने वाले नजर आए।
पुराना बस स्टैंड को बना दिया टैम्पो स्टैंड
शहर के व्यस्तम स्थानों में से एक पुराना बस स्टैंड पर सबसे ज्यादा अव्यवस्था है। चाहे गांधी मूर्ति जाने वाली रोड हो, जलदाय विभाग कार्यालय के बाहर, बस स्टैंड हो या फिर बस स्टैंड के बगल की गली। जिस तरफ देखो टैम्पो की भरमार दिखती है। जो सवारियों के चक्कर में कई बार आपस में एक-दूसरे से तो उलझते हैं साथ ही कई बार सवारियां भी इसकी चपेट में आ जाती है। पुराना बस स्टैंड पर पुलिस चौकी भी है और जलदाय विभाग के बाहर भी यातायात पुलिस बाइक वालों के चालान काटती है। लेकिन टैम्पो की अव्यवस्था नहीं दिखती।
अब तो चंद्रपोल गेट पर भी कब्जा
पिछले कुछ महीनों से टैम्पो चालकों ने चंद्रपोल गेट के बाहर भी टैम्पो खड़े होना शुरू कर दिए हैं। कुछ मीटर चौड़ी इस सडक़ पर पूरे दिन टैम्पो चालक सवारियों के लिए खड़े रहते हैं और संकड़ी सडक़ पर जाम की स्थिति बनी रहती है।
जहां चाहा, वहां रोका
टैम्पो चालकों के लिए न तो कोई नियम मायने रखता है और न ही कोई कानून। ये अपनी मर्जी के मालिक हैं। यह खेल यातायात पुलिस कार्मिकों की आंखों के सामने चलता है, लेकिन पुलिसकर्मी न तो इन पर कोई कार्रवाई करते हैं और न ही इन्हें टोकने की जहमत उठाते हैं।
Published on:
25 Jan 2018 10:30 pm
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