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अपनी मिट्टी से जुड़ें, साथ मिलकर नया वागड़ बनाएंगे -कोठारी

locationबांसवाड़ाPublished: Jan 26, 2021 12:00:51 am

Submitted by:

Varun Bhatt

Banswara Patrika Foundation Day: बांसवाड़ा संस्करण का 17वां स्थापना दिवस, राजस्थान पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी की बांसवाड़ा व डूंगरपुर के प्रबुद्धजनों से चर्चा, नई पीढ़ी से कर्मशील होकर विकासशील होने का आह्वान

अपनी मिट्टी से जुड़ें, साथ मिलकर नया वागड़ बनाएंगे -कोठारी

अपनी मिट्टी से जुड़ें, साथ मिलकर नया वागड़ बनाएंगे -कोठारी

बांसवाड़ा. ‘मानवता की और मन को छू लेने वाली श्रद्धा से भरी हुई जीवनशैली वागड़ में देखी जा सकती है। यहां अतिथि देवो भव: है। यदि 70 साल में वागड़ अंचल के परिश्रमी लोग प्राकृतिक सुविधा के बाद भी समृद्ध नहीं हुए। इसका अर्थ यही है कि प्रशासन और सरकार ने कर्मशील लोगों के प्रति अपनी भूमिका नहीं निभाई। हमें अशिक्षा, पलायन जैसी समस्याओं के समाधान के लिए अपनी मिट्टी से जुडऩा होगा। सरकार के भरोसे नहीं रहकर स्वयं ही आगे आकर नया वागड़ बनाना होगा। यह उद्गार राजस्थान पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी ने सोमवार को बांसवाड़ा संस्करण के 17वें स्थापना दिवस पर प्रबुद्धजनों के साथ वर्चुअल संबोधन में व्यक्त किए। कोठारी ने वागड़ के सुधिजनों, पाठकों से चर्चां में कहा कि वागड़ क्षेत्रवासी सुख की तलाश में नहीं रहते हैं। प्रकृति के साथ एकात्म भाव से जीते हैं। प्रकृति को ईश्वर मानते हैं। संवेदना व समरसता का यहां जो समाज है, उसी का नाम वागड़ है।
जनचेतना जाग्रत करने का समय
कोठारी ने कहा कि अब जन चेतना जाग्रत करने का समय है। आने वाली पीढ़ी के जीवन में नई चुनौतियां आनी हैं। युवा पीढी को भविष्य पर आंख रखते हुए कदम बढ़ाने होंगे। विकास के मुगालते से बाहर आकर अपने रास्तों से भटकना नहीं है। ईश्वर ने जो दिया है, उसका आकलन कर अपने बूते पर विकास करें। सरकार पर आश्रित नहीं रहें। नई पीढ़ी शिक्षित है। इसे आगे आना है। हर युवा को सूचना का अधिकार का उपयोग करना होगा। जागरूक रहकर विकास कार्यों की जानकारी लेनी होगी। जो गलत हो रहा है, उसे सहन नहीं करें। समझौता नहीं करें। हमें अपने संसाधन एवं लोगों के साथ मिलकर नया वागड़ खड़ा करना है। पत्रिका आपके साथ रहा है और रहेगा।
विकास के पीछे छिपा दर्द
बांसवाड़ा व डूंगरपुर क्षेत्र की समस्याओं पर चर्चा करते हुए कोठारी ने कहा कि राजनीति ने जो दशा बिगाड़ी, उसका वर्णन नहीं कर सकता। विकास के पीछे यहां के लोगों के दर्द को सरकार ने नहीं समझा और न इसे दूर किया। माही बांध को देखें। हम खुश हैं कि नहर के पानी से हजारों हैक्टेयर सिंचित कर दिए, लेकिन इसके पीछे कई लोग उजड़ गए। माही बांध के गेट खुलना जीवन का विकास नहीं है। हर क्षेत्र में सिंचाई के लिए बांध बने, लेकिन वह क्षेत्र प्रभावशाली लोगों ने अपने कब्जे में कर लिए। विस्थापितों के प्रति किसी को दर्द नहीं है। यह किसी को दिखाई नहीं देता है। उन्हें जहां बसाया, वहां अन्य का कब्जा है। हम इसे विकास कह रहे हैं। आज जो वागड़ की स्थिति है, वह गर्व करने लायक नहीं है। आज पूरे राजस्थान में सर्वाधिक बरसात बांसवाड़ा में होती है, किंतु बरसात में जंगल नहीं दिखते। वहां हरियाली के नाम पर जंगली बबूल दिखता है। हजारों किलोलीटर पानी जंगली बबूल पी रहा है। इसी तरह सरकार भी हरियाली के नाम पर विकास की प्रतिकृति प्रस्तुत कर रही है। यह सरकार के कामकाज की स्थिति है। हमें इसे उखाड़ फैंकना है। हम लोकतंत्र हैं। जीना हमारा अधिकार है। प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग व विकास हमारा अधिकार है।
कर्मयोगी समाज आए आगे
कोठारी ने कहा कि प्रकृति ने इस क्षेत्र को बहुत कुछ दिया, लेकिन आज वनोपज की हालत क्या है। प्रोसेङ्क्षसग प्लांट तक नहीं लगे। पेटेंट होकर वनोपज देशभर में पहुंचे, इसके प्रयास नहीं हुए। यह क्षेत्र आज भी रेल से कटा हुआ है। कई सुविधाएं नहीं पहुंची। आज भी रोजगार के लिए लोग बाहर जा रहे हैं। आसपास की बड़ी मंडियों से क्षेत्र नहीं जुड़ पाया। यह विचारणीय है। प्रदेश के अन्य जिलों के लोग आज भी वागड़ के भूगोल, संस्कृति, इतिहास आदि के बारे में नहीं जानते हैं। हम लोग सिर्फ इतना ही जानते हैं कि वहां भील रहते हैं। आदिवासी तीरंदाजी और पहाड़ों पर दौड़ के लिए जाने जाते हैं। खेल विभाग ने विशेष ध्यान नहीं दिया। आज अंचल में सैकड़ों लिंबाराम हो सकते हैं। इन समस्याओं के समाधान के लिए कर्मयोगी समाज को आगे आना होगा।
यह बताई विशेषता
अपने संबोधन में कोठारी ने वागड़ अंचल की विशेषता का उल्लेख करते हुए कहा कि आज कृषि में बांसवाड़ा में सर्वाधिक प्रयोग हो रहा है। पहले बांस के नाम से बांसवाड़ा को जानते थे। आज बादाम और चंदन तक की खेती होती है। नैसर्गिक सुंदरता और तीर्थ चारों ओर हैं। संत मावजी, गलालेंग, बेणेश्वर धाम, त्रिपुरा सुंदरी आदि का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि वागड़ मान मर्यादा और गंभीर साहित्य का धनी क्षेत्र है। अध्यात्मिक दृष्टि से गहन साहित्य है। यहां के आदिवासियों में आस्था का जो स्वरूप है, उसके अनुसार ईश्वर ने जो दिया है, उससे वह संतुष्ट है। यह आदिवासियों में ही देखने को मिला है। वर्षों पूर्व बेणेश्वर मेले के कवरेज के दौरान स्थानीय परिस्थितियों का उल्लेख कर कहा कि जितनी मीरा प्रसिद्ध है, आदिवासियों में उतने ही मावजी प्रसिद्ध हैं।
सामाजिक दायित्व का निर्वहन
कोठारी ने बांसवाड़ा संस्करण को आरंभ करने के बारे में कहा कि पत्रिका ने वागड़ को शेष राजस्थान से जोड़ा है। पत्रिका की खबरों को सभी मानते हैं, सच्ची खबर देते हैं। खबर पहला और सामाजिक शिक्षण दूसरा दायित्व है। पत्रिका आज सामाजिक शिक्षा और सरोकारों का दायित्व निभा रहा है। लोगों को सरकार की ओर नहीं, अपने श्रम व धरती से जोड़कर जीना सीखा रही है। अमृतम् जलम्, हरयाळो राजस्थान को सरकार के बजाय स्वयं किया तो खुशी मिली। पुरातन ज्ञान को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का सामाजिक शिक्षण का दायित्व अब पूरा करना है। हम नई पीढ़ी के लिए कुछ नहीं छोड़ रहे हैं। नई पीढ़ी के भविष्य को सुधारने के लिए हर दिन नया करने का संकल्प लेना होगा। उन्होंने समस्याओं को पत्रिका से साझा करने का आह्वान कर कहा कि समाधान के लिए सरकार के स्तर तक जाएंगे। पत्रिका की जान पाठकों के जीवन से जुड़ी है। आपको तकलीफ होती है, दर्द हमें होता है। उस दर्द को बांटना चाहते हैं। संघर्ष के साथ जीना चाहते हैं। हम एक परिवार के हैं।
अभियानों का उल्लेख
कोठारी ने बांसवाड़ा संस्करण की उपलब्धियों और अभियानों का उल्लेख कर कहा कि रन फोर रेल अभियान निरंतर चलाया। सर्वे हुआ। कुछ काम भी हुए, हालांकि रेल लाइन शुरू नहीं हुई। यहां के दर्द को समझना व देखना कोई नहीं चाहता है। इतना बड़ा समृद्ध इलाका देश से जुड़ेगा। उद्योग से वातावरण बनेगा, किसी को चिंता नहीं है। मानगढ़ का मान अभियान के बाद पहली बार वहां तिरंगा फहराया गया। महिलाओं के प्रति अनादर के व्यवहार पर मर्यादा का रहे मान अभियान चलाया। ऋण माफी घोटाला खोलकर करोड़ों के भ्रष्टाचार को उजागर किया। पत्रिका ने चिकित्सा, शिक्षा आदि विषयों को प्रमुखता से उठाया। सरकारी खानापूर्ति व कागजी कार्रवाई पर सवाल उठाए। इससे पहले डिप्टी एडिटर भुवनेश जैन ने बांसवाड़ा संस्करण के आरंभ से पूर्व की स्थितियों का उल्लेख कर कहा कि कोठारी जी का वागड़ से अधिक स्नेह रहा है। उन्होंने आदिवासी जनजीवन का गहराई से अध्ययन किया। संस्करण के आरंभ होने से वागड़ अंचल की समस्याओं को दूर करने में मदद मिली। सुदूर गांवों में पत्रिका पहुंचा। दोनों जिलों में समस्याओं को लगातार उठाना शुरू किया। कई अभियान उठाए और उसके परिणाम तक पहुंचे। उन्होंने रेल लाइन के लिए अभियान का उल्लेख कर कहा कि यह सपना अधूरा है, लेकिन अंचलवासियों के सहयोग से पूरा कर ही दम लेंगे। कार्यक्रम का संचालन राज्य संपादक अमित वाजपेयी ने किया। बांसवाड़ा संस्करण के सम्पादकीय प्रभारी वरुण भट्ट ने सह संचालन कर विगत 16 वर्षों की विकास यात्रा का संक्षिप्त उल्लेख करते हुए प्रबुद्धजनों से रूबरू कराया।
इन्होंने भी रखी बात
– जनजाति क्षेत्रीय विकास राज्यमंत्री अर्जुनसिंह बामनिया ने कहा कि कोठारीजी ने बेणेश्वर से लेकर आदिवासियों तक चिंतन व्यक्त किया है। विस्थापितों की चिंता की है। आज शिक्षा को बढ़ावा मिल रहा है, लेकिन स्वयं के समाज के विकास में बाधा बनने वाले लोगों का सर्वे करने की आवश्यकता है। जो जनता के प्रति दायित्व को नजरअंदाज कर रहे हैं, वह सामने आएगा और विकास की राह प्रशस्त करने में मदद मिलेगी। उन्होंने पत्रिका के अभियानों अमृतम् जलम, हरियाळो राजस्थान का उल्लेख कर कहा कि सामाजिक सरोकार के कार्य अनुकरणीय है।
– गोविंद गुरु जनजातीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आईवी त्रिवेदी ने कहा कि पत्रिका ने सदैव सकारात्मक भूमिका का निर्वहन किया है। गुलाबजी का वेदों के प्रति लगाव है। विवि में वेदों के संबंध में नया कदम उठाया है। वेद विद्यापीठ के माध्यम से चार पाठ्यक्रमों में दो हजार से अधिक अभ्यर्थियों ने आवेदन किया है। इसमें साढ़े आठ सौ आदिवासी अभ्यर्थी भी सम्मिलित हैं। उन्होंने वेद विद्यापीठ से जुड़े अभ्यर्थियों को मार्गदर्शन देने के लिए कोठारी से व्याख्यान एवं मार्गदर्शन देने का आग्रह किया, जिससे उनके अनुभव का लाभ मिल सके।
– पूर्व विधायक रमेश पंड्या ने कहा कि पत्रिका ने धर्म, कर्म, अध्यात्म के क्षेत्र में जो नया विजन दिया है। सोचने-समझने का अवसर दिया है, वह अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। वागड़ को जिस गंभीरता से अपने संबोधन में उद्घाटित किया हे, वह कार्य करने को प्रेरित करता है। वर्तमान परिवर्तन की बयार में माही का महत्वपूर्ण योगदान है। कुछ कमियां जरूर हैं। शिक्षा के लिए काम करना है। उन स्थानों को चिह्नित करना है, जो अभावग्रस्त व गरीबी के कारण उच्च शिक्षा से दूर हैं। पलायन रोकने की दिशा में भी मिलकर ठोस रूप से काम कर सकते हैं।
– नगर परिषद के सभापति जैनेन्द्र त्रिवेदी ने कहा कि कोठारीजी ने वागड़ के कोने-कोने का अध्ययन किया है। माही और बेणेश्वर सहित अंचल को गहराई से जाना है। बेबाक टिप्पणियों को प्रेरक बताते हुए उन्होंने कहा कि आज वागड़ में ट्राइबल टूरिज्म को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। यहां के उत्पादों, आदिवासी संस्कृति और परम्पराओं का बखान राष्ट्रीय स्तर पर किया जाए। इनका पेटेंट कराने और ट्राइबल टूरिज्म के साथ लोक जीवन को जोडऩे से विकास की राह प्रशस्त होगी।
– कृषि अनुसंधान केंद्र के संभागीय निदेशक डा. प्रमोद रोकडिय़ा ने कहा कि आज विकास में कमी भी है और विकास की राह पर बढ़ भी रहे हैं। विगत दस वर्षों से कृषि में काफी विकास हुआ है। जलभराव क्षेत्र में 15 हजार हैक्टेयर भूमि चली गई, लेकिन 40 हजार हैक्टेयर में किसानों न खेती की है। कृषि तकनीकी किसानों तक पहुंचा रहे हैं। इससे कृषि के तरीकों व किसानों के रहन-सहन में बदलाव आया है। पलायन, पोषण पर फोकस करने की जरूरत है। इसके अतिरिक्त जल, जंगल, जमीन, जानवर पर भी विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
– एसबीपी कॉलेज डूंगरपुर के व्याख्याता प्रो. उपेंद्रसिंह ने कहा कि राजस्थान पत्रिका की ओर से लोक संस्कृति और साहित्य के संरक्षण के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। वागड़ अंचल में शिक्षा के प्रति जागरूकता कम है। विद्यार्थी बीएड-एसटीसी से ऊपर सोच नहीं पा रहे हैं। उनकी काउंसलिंग के भी प्रयास होने चाहिए। वागड़ अंचल में पिछले कुछ समय से वर्गीय संघर्ष के हालात बने हैं, इसे ठीक करने और वर्गीय सहयोग स्थापित करने की दिशा में काम करने की आवश्यकता है।
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