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Video : बांसवाड़ा : एमजी अस्पताल जाओ तो पानी-पेशाब भूल जाओ

सबसे ज्यादा परेशानी ओपीडी के समय आने वाले लोगों को आती हैं

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बांसवाड़ा. एमजी अस्पताल जाओ तो पानी पेशाब भूल जाओ। सुनकर थोड़ा अजीब लगेगा लेकिन है बिल्कुल सत्य। दरअसल, महात्मा गांधी अस्पताल में हालात ऐसे हैं कि मरीजों को पानी और पेशाब के लिए इधर-उधर भटकना पड़ता है। इस कारण लोग मजबूरीवश खुले में लघुशंका को मजबूर हैं। इससे अस्पताल परिसर में गंदगी फैल रही है। अस्पताल परिसर में ओपीडी में आने वाले मरीजों के लिए पीने के पानी की दुरुस्त व्यवस्था तक नहीं है।

नल या तो बंद या पसरी गंदगी

महात्मा गांधी अस्पताल की मुख्य इमारत में लोगों के लिए पीने के पानी की दुरुस्त व्यवस्था नहीं है। सिर्फ लिफ्ट के बगल में एक प्याऊ है, जिसमें देखने को तो 5-6 नल लगे हैं, लेकिन चलते सिर्फ दो ही हैं। जो पीने पीते समय साफ मिल जाएं तो आपकी किस्मत। इमारत के बाहरपरिसर में ही संचालित मेडिकल स्टोर के बगल में वाटर कूलर रखा गया है। लेकिन इसका पानी पीने का मतलब बीमारी को दावत देना जैसा है। क्यों कि इसके ठीक पीछे लोगों ने पेशाब घर बना रखा है। इसलिए इस प्याऊ में पानी पीना तो दूर दुर्गंध के कारण पास जाना भी मुश्किल है। निशुल्क दवा काउंटर के सामने लगे वाटर कूलर का हाल यह है कि लोगों और कार्मिकों को तो याद भी नहीं कि ये कब चलता है। पूरे अस्पताल परिसर में एमसीएच बिल्डिंग में लगा वाटर कूलर ही दुरुस्त है, जहां लोग पानी पी सकते हैं।

डाक्टर, अफसरों की अलग व्यवस्था

दरअसल, अस्पताल परिसर में पीएमओ,चिकित्सकों और कार्मिकों ने स्वयं के लिए पीने के पानी की अलग व्यवस्था कर रखी है। जिम्मेदार या तो कैम्पर मंगवाते हैं या फिर चिकित्सकों के चैंबर में लगे वाटर प्यूरीफायर का पानी पीते हैं। हालांकि स्वयं के लिए पीने के पानी की व्यवस्था करना कोई गलत बात नहीं है पर अन्य लोगों के लिए पीने के पानी की चाकचौबंद व्यवस्था करना भी प्रबंधन की ही जिम्मेदारी है।

परिसर बना मूत्रालय

ऐसा नहीं है कि अस्पताल में उपचार के आने वालों के लिए शौचालय की व्यवस्था नहीं है। एक ओर जहां प्रत्येक वार्ड में व्यवस्थित बाथरूम बने हैं। वहीं, ओपीडी में उपचार के लिए आने वालों के लिए भी बाथरूम की व्यवस्था है। लेकिन प्रबंधन ने अपनों को सहूलियत देने के लिए इमरजेंसी कक्ष के बगल में बने महिला और पुरुष बाथरूम पर कुछ माह पूर्व ताला डलवा दिया था। क्योंकि इन बाथरूम के उपयोग होने पर इससे सदैव दुर्गंध आती रहती थी। जिससे इमरजेंसी में चिकित्सक और अन्य कार्मिकों को दिक्कत होती थी। परिणाम यह हुआ कि लोगों ने खुले स्थान को मूत्रालय बना दिया।


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