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बांसवाड़ा : ‘प्रकृति के प्रत्येक कण में मुझे देखने वाला ही मेरा परम भक्त है’

locationबांसवाड़ाPublished: Sep 29, 2020 07:51:35 pm

Submitted by:

Varun Bhatt

Banswara News In Hindi : सरस्वती वेदपाठशाला में साधकों द्वारा विशेष अनुष्ठान

बांसवाड़ा : 'प्रकृति के प्रत्येक कण में मुझे देखने वाला ही मेरा परम भक्त है'

बांसवाड़ा : ‘प्रकृति के प्रत्येक कण में मुझे देखने वाला ही मेरा परम भक्त है’

बांसवाड़ा. स्वामी रामानन्द सरस्वती वेदपाठशाला के साधकों द्वारा आयोजित मास अनुष्ठान में साधकों द्वारा पाठशाला के मुख्य संचालक सेवक हर्षवर्धन व्यास के मार्गदर्शन में कमला एकादशी पर विशेष अनुष्ठान आयोजित हुआ। पं. दीपेश पंड्या व चित्रेश के आचार्यत्व, पं. पवन पंड्या के सह आचार्यत्व में कृष्ण भक्त यजमान पृथ्वीसिंह चोरमार व परिवार द्वारा भद्रसूक्त, शान्ति सूक्त पाठ के साथ भगवान पुरुषोत्तम का त्रिशोपचार पूजन किया गया। इस दौरान पुरुषसूक्त पाठ गायन के साथ तुलसी मिश्रित जल से भगवान का अभिषेक किया गया। इसके बाद साधकों ने ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करते हुए 3501 दीप की मनोहारी दीपमाला सजाई। साधकों ने विष्णुयाग के निमित्त विष्णुसहस्रनाम स्तोत्र व श्रीसूक्त के पाठ किए। अनुष्ठान के दौरान आयोजित संवाद कार्यक्रम में साधकों ने भाग लिया। जिसमें बताया कि गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को कहते हैं कि केवल मूर्ति में मेरा दर्शन करने वाला नहीं अपितु सारे संसार में प्रत्येक जीव के भीतर और कण-कण में मेरा दर्शन करने वाला ही मेरा भक्त है। प्रत्येक वस्तु परमात्मा की है, अपनी मानते ही वह अशुद्ध हो जाती है। तुम भी परमात्मा के ही हो, परमात्मा से अलग अपना अस्तित्व स्वीकार करते ही तुम भी अशुद्ध हो जाते हो। प्रकृति में परमात्मा नहीं, अपितु ये प्रकृति ही परमात्मा है। जगत और जगदीश अलग-अलग नहीं, एक ही तत्व हैं। परमात्मा का जो हिस्सा दृश्य हो गया है वह जगत है और जगत का हो हिस्सा अदृश्य रह गया वह जगदीश है। संसार से दूर भागकर कभी भी परमात्मा को नहीं पाया जा सकता है। संसार को समझकर ही भगवान् को पाया जा सकता है। जगत में कहीं दुख, अशांति, भय नहीं है। यह सब तो तुम्हें अपने मनमाने आचरण, असंयमता और विवेक के अभाव के कारण प्राप्त हो रहा है। अंत मे आयोजित महाआरती में कीबोर्ड पर यश उपाध्याय, ढोलक पर हर्षित जोशी, मंजीरों पर खुष्पेंद्र पुरोहित ने संगत दी। अनुष्ठान में डॉ. कुलदीप शुक्ला के सानिध्य के साथ पं. शिवशंकर उपाध्याय, बालकृष्ण पाठक, हरिकृष्ण पाठक, अभिषेक शर्मा, कीर्तिश रख, मितेश भट्ट, चिन्मय, दिव्य, भास्कर , नगेन्द्र चावलवाला, भारतेन्दु व्यास, जगदीश वैष्णव, प्रियेश गामोट, लक्ष्मीकांत जोशी सहित 41 साधकों ने योगदान दिया।

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