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#OnceUponATime: ऐसा वृक्ष जिसकी पूजा से पांडवों को मिली थी महाभारत में जीत, इंद्रलोक से लाये थे धनुर्धारी अर्जुन

- #OnceUponATime महाभारत काल का जिंदा गवाह है पारिजात वृक्ष - बाराबंकी जनपद में तहसील रामनगर इलाके के बदोसराय क्षेत्र में स्थित - भगवान कृष्ण का आदेश पाकर अर्जुन इन्द्रलोक से लाये थे पारिजात वृक्ष - पारिजात वृक्ष का संरक्षण कर रही केंद्र और राज्य सरकार

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Parijat tree Barabanki Unknown facts

#OnceUponATime: ऐसा वृक्ष जिसकी पूजा से पांडवों को मिली थी महाभारत में जीत,साल में एकबार आते हैं फूल

बाराबंकी. साढ़े पांच हजार साल वैसे सुनने में तो काफी कम लगते हैं लेकिन सोचो तो न जाने कितनी पीढ़ियां काल के कपाल में समां चुकी हैं। मगर इतने साल बीत जाने के बाद भी दुनिया में अगर कहीं कोई महाभारत काल का जिंदा गवाह मौजूद है तो वह सिर्फ और सिर्फ उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जनपद में है। सुनने में हैरानी और उत्सुकता जरूर होगी कि आखिर वो कौन है। तो अब हम आपको बताते हैं कि वो देवासुर संग्राम के समय हुए समुद्र मंथन से निकला था और उसे इन्द्र देव अपने साथ स्वर्ग लोक लेकर गए थे। द्वापर युग में भगवान कृष्ण के आदेश पर महाराजा पाण्डु के पुत्र धनुर्धारी अर्जुन उसे पृथ्वी पर लाए थे। अगर अब तक बात समझ में न आई हो तो हम उसका नाम भी बता देते हैं, उसका नाम है 'देववृक्ष पारिजात'। उत्तर प्रदेश सरकार ने इस वृक्ष को संरक्षित घोषित किया है।

महाभारत में विजय का आशीर्वाद

विद्वानों के मुताबिक महाभारत काल में पाण्डवों के अज्ञातवास के दौरान माता कुन्ती से भगवान शिव ने स्वर्ण के सामान दिखने वाले पुष्प अर्पित करने को कहा था। माता कुन्ती ने भगवान शिव की इस इच्छा को अपने पुत्र अर्जुन से बताया और फिर अर्जुन ने भगवान कृष्ण के परामर्श से इन्द्र लोक जाकर इसे पृथ्वी पर रोपित किया। इसके पुष्पों को जब माता कुन्ती ने शिव को समर्पित किया तो प्रसन्न होकर भगवान शिव ने महाभारत युद्ध में विजय का आशीर्वाद दिया। आज भी साल में एक बार इस वृक्ष में पुष्प आते हैं। सावन के महीने से पहले इन पुष्पों का आना तय माना जाता है।

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यहां गुजरा था पाण्डवों का अज्ञातवास

ये चमत्कारिक देववृक्ष बाराबंकी जनपद के तहसील रामनगर इलाके के बदोसराय क्षेत्र में है। बाराबंकी मुख्यालय से इसकी दूरी लगभग 50 किलोमीटर है। ऐसा माना जाता है कि पाण्डवों ने अपना अज्ञातवास यहीं बराहवन (बदला हुआ नाम बाराबंकी ) के इसी इलाके में गुजारा था। अज्ञातवास के दौरान पाण्डवों की माता कुन्ती को भगवान शिव ने स्वप्न में आकर उनसे स्वर्ण के समान दिखने वाले पुष्पों को समर्पित करने की इच्छा व्यक्त की थी। भगवान शिव की इस इच्छा को उनका आदेश मानकर माता कुन्ती ने अपने पुत्र अर्जुन को ऐसे पुष्प लाने को कहा। माता के आदेश पर अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से इस बारे में परामर्श लिया। तब भगवान कृष्ण ने अर्जुन को बताया कि ऐसे पुष्प देने वाला वृक्ष समुद्र मंथन से प्राप्त हुआ था, जो अब इन्द्रलोक में ही है। भगवान कृष्ण का आदेश पाकर अर्जुन इन्द्रलोक से पारिजात वृक्ष को पृथ्वी पर लेकर यहां बाराबंकी में स्थापित किया।

#OnceUponATime पाण्डवों को मिला था जीत का आशीर्वाद

इस वृक्ष के स्वर्ण के समान दिखने वाले पुष्पों को माता कुन्ती ने इसी क्षेत्र में एक शिवलिंग स्थापित कर जो आज कुन्तेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है पर समर्पित किया। भगवान शिव ने तब प्रसन्न होकर पाण्डवों को महाभारत युद्ध में जीत का आशीर्वाद दिया। परिणाम स्वरुप कौरवों की करोड़ों की सेना पर पाण्डवों की जीत हुई। इस पुष्प की विशेषता ये है कि जब ये वृक्ष में होता है तो ये सफेद रंग का दिखता है लेकिन जब ये वृक्ष से टूटता है तो ये स्वर्ण के समान सुनहरा दिखता है। ऐसा माना जाता है कि जो भी इस वृक्ष के पुष्पों को कुंतेश्वर महादेव को समर्पित करता है उसकी सभी मनोकामनाएं की पूरी हो जाती हैं। सर्व मनोकामना पूरी करने वाला ये पुष्प एक बार फिर देववृक्ष पारिजात पर दिखने लगे हैं और भक्तों की भीड़ का आना शुरू हो गया है।

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पारिजात वृक्ष संरक्षित घोषित

केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार ने पारिजात वृक्ष को संरक्षित घोषित किया है। पारिजात वृक्ष के महत्व को संरक्षित और विकसित करने के लिए राजधानी के नेशनल बोटनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट ने शोध की योजना बनाई है। नेशनल बोटनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट के विशेषज्ञों के मुताबिक फरवरी 2016 से इस वृक्ष की देखरेख की जा रही है। पिछले 10 सालों में पारिजात में फूलों की कमी पाई गई है। क्लोनिंग से इसकी विरासत को जीवित रखने की उम्मीद है।