15 दिन रहने में परेशानी एमटीसी में मापदंडों के मुताबिक करीब 15 दिनों तक भर्ती रहकर गुणवत्तापूर्ण आहार और दवाइयां लेने की आवश्यकता रहती है। इस दौरान मां समेत दो परिजनों की जरूरत रहती है। घर और गांव छोड$कर इतने दिनों तक अस्पताल रहने में असुविधा होने से परिजन खुद ही इलाज अधूरा छोड$कर घर लौट रहे है। ऐसे मरीजों को अस्पताल की ओर से एब्सकॉंन्ड (बंक मारना/ लामा) की सूची में रखा जा रहा है। बारां जिला अस्पताल की एमटीसी से अप्रेल 2024 से मार्च 2025 के एक वर्ष में 33 बच्चे बंक मार गए। शाहाबाद एमटीसी से जनवरी से दिसम्बर 2024 तक 270 बच्चों को भर्ती किया गया। इसमें करीब 63 बीमार बच्चे इलाज पूरा लेने से पहले ही खिसक गए। वैसे एक परिजन को प्रतिदिन प्रोत्साहन राशि भी दी जाती है।
फिर बंद की तैयारी सूत्रों ने बताया कि पूर्व में कुपोषित बच्चों की मृत्यु के मामले सामने आने लगे तो सरकार में हडकम्प मच गया था और किशनगंज, केलवाड़ा और रेलावन के सहरिया क्षेत्र में भी एमटीसी शुरू किए गए थे। इससे कुछ वर्षो में स्थिति सुधर गई, मामला भी ठंडा हो गया तो गांव से रेफर करना बंद कर दिया। एमटीसी खाली रहने लगे तो रिपोर्ट देकर करा दिए बंद। साल डेढ़ साल में कलक्टर और उच्चाधिकारी भी बदल जाते है। पिछले वर्ष भी तत्कालीन सीएमएचओ डॉ. संपतराज नागर ने एमटीसी बढ़ाने के लिए लिखा था। नए अधिकारी आए लेकिन बरसों से एमटीसी देखने वाले अधिकारी फाइलों को दबाकर बैठ गए। इसका फोलो तक नहीं किया गया।
महिला बाल विकास विभाग से चर्चा की जाएगी। जल्द कुपोषित प्रभावित क्षेत्र में नए एमटीसी शुरू करने की तैयारी है। डॉ. संजीव सक्सेना, सीएमएचओ वर्तमान में जिले में बारां व शाहाबाद में दो एमटीसी ही चालू है। दोनों एमटीसी पर कुपोषित बच्चों को मापदंडों के तहत समूचित आहार व उपचार दिया जा रहा है।
डॉ. सीताराम वर्मा, नोडल अधिकारी (एमटीसी)