
मांगरोल. बारां जिले के मांगरोल नगर में लगभग 166 सालों से होती आ रही ढ़ाई कड़ी दोहे की रामलीला का अलग ही अंदाज है।
मांगरोल. बारां जिले के मांगरोल नगर में लगभग 166 सालों से होती आ रही ढ़ाई कड़ी दोहे की रामलीला का अलग ही अंदाज है। तुलसीकृत रामायाण से हाड़ौती भाषा व डिंगल भाषा का समावेश कर यहां रामलीला का कथानक लिखा गया है। रागभोपाली पर आधारित इस रामलीला में दोहा तान व उतार के समावेश से ढ़ाई कड़ी बनाई गई है। गंगा जमनी संस्कृति की मिसाल यहां की रामलीला में हिंदू व मुसलमानों की समान रुप से भागीदारी रही है। यह अलहदा बात है कि रामलीला में पात्रों की भूमिका निभाने वाले घांसी उस्ताद, रमजू लीलगर, खुदाबख्श लीलगर, अजीमुल्ला, बादुल्ला व गटटो अब इस दुनियां में नहीं रहे पर वो जो मिसाल कायम कर गए वह आज भी जिंदा है।
हाड़ौती में रामलीला पाटौंदा में भी होती है। आश्विन सुदी एकम से शुरु होने वाले दशहरे को बड़ा व चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से शुरु होने वाले दशहरे को यहां छोटा माना जाता है। आश्विन में आने वाले दशहरे पर सारे देश की तरह यहां भी रावण दहन होता है। लेकिन रामलीला चैत्र में ही होती है। रामलीला में रावण वध की लीला का मंचन होता है, तो इससे पहले सोरतीपाड़ा मौहल्ले में इसी दिन हिरण्यकश्यपक का दहन किया जाता है।
---रामलीला कब शुरु हुई और कैसे!
इस मामले में बरसों से काम कर रहे लोगों ने बताया कि पीपल्दा की रामलीला मांगरोल से भी पुरातन है। यहां के ब्राहमण परिवार की कन्या पीपल्दा के पास ख्यावदा गांव में ब्याही थी। उसी परिवार के द्वारा पीपल्दा में रामलीला की शुरुआत हुई थी। वहां से रामलीला यहां आई। यहां से नारायण खाती, रामनाथ ब्राहमण व माधो लाल वहां गए, और भटटजी द्वारा लिखित रामायण की नकल कर यहां लाए। उसी के आधार पर यहां रामलीला का मंचन होता आ रहा है।
डेढ़ दशक पहले रामलीला में उतार भी आने लगा। ऐसा लगने लगा कि रामलीला की परंपरा ही समाप्त हो जाएगी। लेकिन इस बीच नए कलाकारों के उदय ने इसको जीवनदान देना शुरु किया। रामलीला में अब युवाओं ने कमान संभाल ली है। इससे रामलीला का कलेवर भी बदला है। किरदार बदले व नवाचार हुआ तो रामलीला में दर्शकों की संख्या भी लगातार बढ़ऩे लगी है।
--भरत मिलाप पर होती है पूरी
गणेश जन्म व रामजन्म से शुरु होकर भरतमिलाप के बाद रामलीला पूरी होती है। इस बीच धनुष यज्ञ, रामबारात, सूर्पनखां की नाक कटाई, सीताहरण, बाली सुग्रीव युद्व, लक्ष्मण शक्ति, रावण वध व अंतिम दिन रामराज्याभिषेक होता है।
टेलीविजन व अन्य प्रचार साधनों के बाद भी रामलीला में दर्शक नहीं घटे हैं। नवनिर्माण की प्रक्रिया में समयानुसार सुधार होता रहा तो पौराणिक रामलीला इतने सारे परिवर्तनों के बाद भी विलुप्ति के कगार पर नहीं पहुंचेगी। रामलीला में संगीत जरुरी है। चाहे मेकअप में कमी रह जाए लेकिन रामलीला की मिसाल संगीत इसे जीवंत बनाए हुए है।
----कर्मवीर शर्मा कलाकार
पुरातन रामलीला का कोई सानी नहीं है। कितने ही साधन हो जाए पर इसको देखने वाले दर्शकों की संख्या नहीं घटेगी। युवाओं की भागीदारी भी इस परंपरा को बनाए रखने में मील का पत्थर साबित होगी।
मदनलाल सोनी बुजुर्ग कलाकार रामलीला
Published on:
27 Mar 2019 06:50 pm
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