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बरेली की बंद पड़ी रबड़ फैक्ट्री से रेस्क्यू किया बघीरा बना कानपुर जू की शान, पकड़ने में लगा था इतना वक्त

बरेली। बरेली की बंद पड़ी रबड़ फैक्ट्री से 4 मई 2018 को बघीरा (बाघ) को रेस्क्यू किया गया था। अब वह कानपुर जू की शान बना हुआ है। बघीरा ने 68 दिन तक 47 कर्मचारियों को छकाया था। इसके बाद डब्ल्यूडब्ल्यूएफ (वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फंड) एवं वर्ल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ (डब्ल्यूटीआई) की टीम की डॉ. रितिका ने ट्रैकुलाइजर से अचूक निशाना मारकर रेस्क्यू किया। उस समय वह दो साल का था।

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गन्नों के खेत से होते हुए रबड़ फैक्ट्री पहुंचा

बघीरा नाम मोगली कार्टून के बाघ कैरेक्टर से दिया गया है। कानपुर जू में आया तो एकांत में रहना पसंद करता था। इसे सामान्य होने में दो बरस लग गए। आज यह पर्यटकों को देखकर उग्र होने के बजाय बाड़े में उनके करीब घूमता रहता है। जब यह रेस्क्यू किया गया था, तब इसकी लंबाई छह फीट थी। आज यह करीब 12 फीट लंबा हो गया है। इसका वजन करीब डेढ़ क्विटल है। हर रोज यह 12 किलो मांस खाता है। रेस्क्यू करते वक्त विशेषज्ञों की टीम ने बताया था कि यह बाघ पीलीभीत टाइगर रिजर्व का है। संभवतः किसी बाघ से वर्चस्व की लड़ाई में कमजोर पड़ने के बाद गन्नों के खेत से होते हुए रबड़ फैक्ट्री पहुंचा। यहां वह चरने आने वाले पशुओं का आसानी से शिकार कर लेता था।

68 दिन तक 47 कर्मचारियों-अफसरों को छकाया

कानपुर से पहले बघीरा का ठिकाना बरेली के फतेहगंज पश्चिमी स्थित बंद रबड़ फैक्ट्री थी। इसे 25 फरवरी 2018 को ठिरिया के एक किसान टिंकू भारद्वाज ने देखा था। तब से 68 दिन तक वन विभाग के 47 कर्मचारियों-अधिकारियों को उसने छकाया था। इतना चालाक था कि शिकार के लिए बांधे गए दो पड्डों को चट कर गया, लेकिन वन विभाग के हाथ न आया। वनकर्मियों ने एक पिंजड़े में सूअर बांधा था। कोई चूक न हो इसके लिए 13 कैमरों से निगरानी कर रहे थे। बघीरा शिकार के लिए पहुंचा, लेकिन खतरा भांपकर वह पिंजड़ा के पास नहीं गया। कानपुर चिड़ियाघर के पशु चिकित्सक डॉ. अनुराग सिंह ने बताया कि बघीरा आज कानपुर जू की शान है है। यह बेहद स्वस्थ और आकर्षक है। पयटकों को देखकर उनके करीब आता है।


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