मौलाना शहाबुद्दीन ने कुरान और हदीस का हवाला देते हुए कहा कि एक निर्दोष व्यक्ति की हत्या, पूरी मानवता की हत्या के बराबर है। उन्होंने बताया कि पैगंबर मोहम्मद ने हमेशा अहिंसा, करुणा और सौहार्द का संदेश दिया। एक हदीस में उल्लेख है अच्छा मुसलमान वह है, जिससे किसी को भी उसके हाथ, पैर या जुबान से कोई नुकसान न पहुंचे। एक अन्य हदीस का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा, अपने देश से प्रेम करना आधा ईमान है। इसलिए इस्लाम अपने अनुयायियों को जहां भी वे रहते हैं, उस देश और उसकी मिट्टी से मोहब्बत करने की शिक्षा देता है।
फतवे में आतंकवादी संगठनों को बताया गैर-इस्लामी
फतवे में पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठनों लश्कर-ए-तैयबा (हाफिज सईद) और जैश-ए-मोहम्मद (मसूद अजहर) को इस्लाम विरोधी और गैर-शरीयत बताया गया है। फतवे में कहा गया है कि जो लोग इस्लाम के नाम पर संगठन बनाकर मासूम लोगों की हत्या कर रहे हैं, वे शरीयत की दृष्टि में नाजायज और हराम कार्य कर रहे हैं। इस्लाम ऐसा धर्म है जो पूरी मानवता, चाहे वह किसी भी धर्म से हो, की जान, माल और सम्मान की रक्षा की बात करता है।
जिहाद की गलत व्याख्या की निंदा
फतवे में यह भी स्पष्ट किया गया कि कुछ लोग ‘जिहाद’ शब्द का गलत अर्थ निकालकर इसका उपयोग हिंसा और आतंक के लिए कर रहे हैं। यह प्रवृत्ति इस्लाम की मूल शिक्षाओं के खिलाफ है। इस्लाम हमें एक-दूसरे के दुःख-सुख में शरीक होने और सहअस्तित्व के साथ जीवन जीने की शिक्षा देता है।
आतंकवादी हमलों को धर्म से जोड़ना गलत
फतवे में कड़ी भाषा में कहा गया है कि किसी भी आतंकी हमले को धर्म से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुआ हमला एक नृशंस और कायराना कृत्य है, जिसका धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। ऐसे कृत्यों की हर स्तर पर निंदा होनी चाहिए। मौलाना शहाबुद्दीन ने सभी धर्मों के अनुयायियों से सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखने और देश की एकता व अखंडता को मजबूत करने की अपील की। उन्होंने कहा इस्लाम अमन, भाईचारे और न्याय का धर्म है। आतंकवाद और हिंसा से इसका कोई संबंध नहीं है।