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इस मुहूर्त में करें विजयदशमी का पूजन, हर क्षेत्र में मिलेगी सफलता

इस दिन की विशेष बात यह है कि इस दिन सवार्थ सिद्ध योग, अमृत योग एवं गजकेशरी योग भी बन रहा है।

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vijay dashmi

इस मुहूर्त में करें विजयदशमी का पूजन, हर क्षेत्र में मिलेगी सफलता

बरेली। असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक विजयदशमी यानी दशहरा 19 अक्टूबर को मनाया जाएगा। विजयदशमी का पूजन विजय मुहूर्त में करना श्रेष्ठ पाना गया है। इस वर्ष विजय मुहुर्त दोपहर 01ः10 बजे से 01ः53 बजे तक ही है। इस मुहूर्त में पूजा करने से हर क्षेत्र में विजय प्राप्त होगी। बालाजी ज्योतिष संस्थान के ज्योतिषाचार्य पंडित राजीव शर्मा के अनुसार इस वर्ष आश्विन शुक्ल दशमी 18 अक्टूबर को दोपहर 03ः29 बजे से आरम्भ होकर 19 अक्टूबर को सांय 05ः57 बजे तक है। श्रवण नक्षत्र 17 अक्टूबर को रात्रि 09ः28 बजे से आरम्भ होकर 18 अक्टूबर को रात्रि 12ः34 बजे तक है। इस प्रकार श्रवण नक्षत्र केवल 18 अक्टूबर को ही दशमी के साथ विधमान है। निर्णय सिन्धु के अनुसार विजय मुहुर्त 18 अक्टूबर को दोपहर 01ः14 बजे से 03ः28 बजे तक है। उसी समय आश्विन शुदी नवमी समाप्त होगी अर्थात् अपरान्ह काल में दशमी तिथि का स्पर्श नही होगा। 19 अक्टूबर शुक्रवार को दशमी प्रदोष काल तक होने के कारण यह अपरान्ह काल एवं विजय मुहुर्त दोनो को स्पर्श करेंगी। अतः विजय दशमी दशहरा मनाना 19 अक्टूबर को शास्त्र अनुसार उचित है। इस दिन की विशेष बात यह है कि इस दिन सवार्थ सिद्ध योग, अमृत योग एवं गजकेशरी योग भी बन रहा है।

इस पर्व पर क्या करें

इस दिन प्रातः 06ः26 बजे से 10ः39 बजे तक चर, लाभ, अमृत का चैघड़िया मुहुर्त एवं वृश्चिक लग्न भी रहेगी इसके बाद दोपहर 12ः04 बजे से 01ः28 बजे तक शुभ का चैघड़िया भी रहेगा। इस दिन स्वयं सिद्ध मुहुर्त होने के कारण नवीन उद्योगों का आरम्भ, वाहन खरीदना, समस्त कार्याें का शुभारम्भ सफलतादायक एवं लाभदायक रहेगा। अतः उपरोक्त चैघड़िया मुहुर्त एवं स्थिर लग्न में खाता पूजन आदि करना अत्यन्त शुभ रहेगा। इस दिन शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए भी शमी वृक्ष के पास जाकर विधिवत पूजन करना चाहिए। इस दिन क्षत्रियों द्वारा ”शस्त्र पूजन“, ब्राह्मणों द्वारा “सरस्वती पूजन” एवं वैश्यों द्वारा “वही पूजन“ करने का विधान है।

कैसे मनाये विजयादशमी


दशहरा पूजन के लिए आटे अथवा गेरू से दशहरा मांडकर उसके ऊपर जल, रोली, चावल, मोली, गुड़, दक्षिणा , फूल, जौ के झंवारे अथवा मूली चढ़ायें तथा दीपक, धूप बत्ती लगाकर आरती करें, परिक्रमा करें, तत्पश्चात् दण्डवत् प्रणाम करके पूजा के बाद हाण्डी में से रूपये निकालकर उस पर जल, रोली, चावल चढ़ाकर अलमारी में रख लें। वहियों पर नवरात्र का नवांकुर भी चढ़ायें एवं कलम-दवात का पूजन भी करें। शस्त्र, शास्त्र एवं पुस्तक पूजन भी करें।

अपराजिता पूजन

अपराजिता देवी यात्रा, कार्याें में सफलता और युद्ध पर्तिस्पर्धा में विजय दिलाने वाली देवी हैं। विजयदशमी पर इसकी पूजा सायंकाल की जाती है। इनकी पूजा के लिए एक थाली में चन्दन से मध्य में अपराजिता देवी, बाईं ओर उमादेवी और दायीं ओर जया देवी का चित्र बनायें और इन तीनों देवियों की पूजा करें।पहली पूजा जया देवी की करें और इस मन्त्र ।। ऊँ क्रियाशक्त्यै नमः।। से आह्वाहन करें एवं ।। ऊँ जयाये नमः।।मंत्र से पूजा करें इसके बाद दूसरी पूजा उमा देवी की करें और ।।ऊँ उपाये नमः।। मंत्र से आह्वाहन करें एवं ।।ऊँ विजयाये नमः।। मन्त्र से पूजन करें। इसके बाद प्रधान पूजा अपराजिता देवी की जाती है। अपराजिता देवी का आवाहन एवं पूजन ।।ऊँ अपराजितायै नमः।। मंत्र से करें। अन्त में तीनों देवियों की प्रार्थना ।।इमां पूजा मया देवि यथाशक्ति निवेदिताम्, रक्षार्थ तु समादाय व्रज स्वस्थानपुत्तमम्।। मन्त्र से करें

शमी पूजन

विजयदशमी पर पाप नाश हेतु और विजय एवं कल्याण के लिए शमी के वृक्ष की पूजा की जाती है। जिसके लिए शमी वृक्ष के पास जाकर उसकी प्रदक्षिणा करें एवं हाथ में अक्षत एवं पुष्पादि लेकर ।।ऊँ विष्णुः विष्णुः विष्णुः मम दुष्कृता अमंगलादिनिरासार्थ क्षेमार्थयात्रायां विजयार्थ च शमीपूजां करिष्ये।। मंत्र का उच्चारण करते हुये संकल्प करें। शमी पूजन हेतु स्वस्तिवाचन, दिक्पाल पूजन एवं वास्तुपूजन करें तथा पंचोपचार या षोडशोपचार से अमंगलानां शमनीं शमनीं दुष्कृतस्य च, दुःस्वप्ननाशिनी धन्यां प्रपद्येहं शमी शुभाम्। मंत्र का उच्चारण करते हुये शमी वृक्ष का पूजन करें। इसके पश्चात शमी वृक्ष के नीचे चावल, सुपारी व तांबे का सिक्का रखें फिर वृक्ष की प्रदक्षिणा कर उसके जड़ के पास की मिट्टी व कुछ पत्ते घर ले आयें।