नहीं मानी गई मांग महात्मा ज्योतिबा फुले रुहेलखंड यूनिवर्सिटी की स्थापना 1975 में संबद्ध विश्विधालय के रूप में की गयी थी। 1985 में इसे आवासीय विश्विधालय का दर्जा प्रदान किया गया। 1997 में यूनिवर्सिटी से महात्मा ज्योतिबा फुले का नाम जुड़ गया। इतने लम्बे समय के बाद भी यूनिवर्सिटी में हिंदी संकाय की स्थापना नहीं हो पाई। इस बारे शहर के प्रसिद्ध कवि रोहित राकेश का कहना है कि वो लम्बे समय से विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग की स्थापना की मांग कर रहें है। उन्होंने बताया कि बरेली के प्रसिद्ध साहित्यकार स्वर्गीय रामप्रकाश गोयल के साथ वो भी कई बार यूनिवर्सिटी गए और यहां पर हिंदी विभाग की स्थापना की मांग की लेकिन हिंदी विभाग नही खुल पाया। उन्होंने कहा कि बरेली से बड़े बड़े साहित्यकारों का नाम जुड़ा हुआ बावजूद इसके बरेली की यूनिवर्सिटी में ही हिंदी विभाग नही है अगर यहां पर हिंदी विभाग खुलता है तो ये आने वाली पीढ़ी के लिए बहुत अच्छा होगा।
तो क्या घाटे का सौदा है हिंदी विभाग
विश्वविधालय प्रशासन हिंदी विभाग को घाटे का सौदा मानता रहा है। इसके लिए दलील ये दी जाती रही है कि कॉलेजों में हिंदी के दाखिले की स्थित खराब है इस लिए विश्विधालय में अगर हिंदी का विभाग खुला तो यह घाटे का सौदा साबित होगा। यूनिवर्सिटी के पीआरओ यशपाल का कहना है कि हिंदी विभाग खोलने के लिए विश्विद्यालय प्रशासन की तरफ़ से कोशिश की जा रही है।