
पीलीभीत। जिले में गन्ने की कटाई अब सिर्फ खेती का काम नहीं, बल्कि जान बचाने की जंग बन चुकी है। जंगल से सटे गांवों में किसान हर साल दहशत के साए में खेतों में उतरते हैं, जहां बाघ और तेंदुओं की मौजूदगी किसी भी वक्त मौत का पैगाम बन सकती है। ऐसे हालात में पीलीभीत के किसानों ने ऐसा देसी जुगाड़ निकाला है, जिसने वन्यजीवों को भी पीछे हटने पर मजबूर कर दिया है।
पीलीभीत जिला कृषि प्रधान है, जहां धान, गेहूं और गन्ना किसानों की रोजी-रोटी का आधार है। लेकिन पीलीभीत टाइगर रिजर्व से सटे सैकड़ों गांवों में गन्ने की फसल कटाई के समय मानव-वन्यजीव संघर्ष का खतरा चरम पर पहुंच जाता है। ऊंची-घनी गन्ने की फसल बाघों के लिए सुरक्षित ठिकाना बन जाती है और कटाई के दौरान उनका सीधे किसानों से सामना हो जाता है। कई बार यह आमना-सामना जानलेवा साबित हो चुका है।
टाइगर रिजर्व से सटे जमुनिया गांव के किसान प्रभुदयाल ने खतरे से निपटने का अनोखा तरीका अपनाया है। खेत में बाघ की चहलकदमी देखने के बाद उन्होंने कटाई रोकने के बजाय साउंड सिस्टम का सहारा लिया। खेत में तेज आवाज में गाने बजाए जा रहे हैं और उसी बीच मजदूर गन्ने की कटाई कर रहे हैं। किसान का दावा है कि शोर के कारण बाघ और तेंदुए खेत के आसपास टिक नहीं पा रहे, वहीं मजदूरों का डर भी काफी हद तक कम हुआ है। किसानों का कहना है कि यह जुगाड़ न सिर्फ जान बचा रहा है, बल्कि मजदूरों के मनोबल को भी बढ़ा रहा है। खेतों में संगीत की आवाज के बीच काम करने से डर का माहौल टूट रहा है।
पीलीभीत टाइगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर मनीष सिंह ने बताया कि बीते वर्षों में गन्ने की कटाई के दौरान मानव-वन्यजीव संघर्ष की कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं। किसानों को सतर्क करने के लिए ‘बाघ एक्सप्रेस’ जैसे जागरूकता अभियानों के जरिए लगातार अलर्ट किया जा रहा है। उन्होंने किसानों से अपील की कि कटाई के दौरान अकेले खेतों में न जाएं, समूह बनाकर काम करें, शोर-शराबा करते रहें और निगरानी के लिए अतिरिक्त लोगों को तैनात करें। पीलीभीत में गन्ने की कटाई अब सिर्फ फसल नहीं, बल्कि हिम्मत और होशियारी की परीक्षा बन चुकी है—जहां किसानों का यह देसी जुगाड़ जान का सबसे बड़ा सुरक्षा कवच साबित हो रहा है।
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Published on:
17 Dec 2025 07:00 am
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