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इस बार बेहद ख़ास है नागपंचमी, ऐसे करें कालसर्प दोष निवारण

इस बार नागपंचमी पर कालसर्प दोष शांति का विशेष फल मिलेगा क्योकि नागपंचमी के दिन गोचर में भी कालसर्प योग बन रहा है।

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इस बार बेहद ख़ास है नागपंचमी, ऐसे करें कालसर्प दोष निवारण

बरेली। 15 अगस्त बुधवार को नागपंचमी है और 38 साल बाद इस बार नागपंचमी पर बेहद ख़ास है। इस बार नागपंचमी पर कालसर्प दोष शांति का विशेष फल मिलेगा क्योकि नागपंचमी के दिन गोचर में भी कालसर्प योग बन रहा है। बालाजी ज्योतिष संस्थान के ज्योतिषाचार्य पंडित राजीव शर्मा ने बताया कि नागपंचमी के महापर्व के सिद्ध मुहूर्त में कालसर्प दोष शान्ति करना उत्तम रहेगा। उन्होंने बताया कि अग्नि पुराण में लगभग 80 प्रकार के नाग कुलों का वर्णन मिलता है, जिसमें अनन्त, वासुकी, पदम, महापध, तक्षक, कुलिक, कर्कोटक और शंखपाल यह प्रमुख माने गये हैं। स्कन्दपुराण, भविष्यपुराण तथा कूर्मपुराण में भी इनका उल्लेख मिलता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार राहू के जन्म नक्षत्र ‘भरणी’ के देवता काल हैं एवं केतु के जन्म नक्षत्र ‘अश्लेषा’ के देवता सर्प हैं। अतः राहू-केतु के जन्म नक्षत्र देवताओं के नामों को जोड़कर ”कालसर्प योग“ कहा जाता है। राशि चक्र में 12 राशियां हैं, जन्म पत्रिका में 12 भाव हैं एवं 12 लग्न हैं। इस तरह कुल 288 कालसर्प योग घटित होते हैं।

कब करें कालसर्प दोष निवारण

उन्होंने बताया कि इस बार नरगपंचमी पर विशेष योग होगा। ऐसा योग 1980 में बना था इस बार नागपंचमी हस्त नक्षत्र, साध्य योग एवं कन्या के चन्द्र में मनायी जायेगी। इस दिन बुधवार को हस्त नक्षत्र रवि योग का विशेष होने के साथ ही गोचर में कर्कोटक नाम का काल सर्प योग होना विशेष संयोग है। जो कि कालसर्प दोष निवारण के लिए यह विशिष्ट दिन है। नागपंचमी के सिद्ध मुहुर्त प्रातः 05:54 से 09:09 लाभ अमृत, प्रातः 10:46 से अपरान्ह 12:24 बजे तक शुभ तथा अपरान्ह 03:39 से सांय 06:54 चर, लाभ के चैघड़िया मुहुर्त में कालसर्प शांति कराना अति उत्तम रहेगा। वर्ष के मध्य में कालसर्प योग जिस समय बने उस समय अनुष्ठान भी सर्वश्रेष्ठ रहता है। गोचर में कालसर्प योग निम्न समय में बन रहा है, 10 अगस्त से 23 अगस्त, सात सितम्बर से 21 सितम्बर एवं पांच अक्टूबर से 18 अक्टूबर तक उपरोक्त समय में भी कालसर्प शांति कराना उत्तम रहेगा। कालसर्प योग यज्ञ का आरम्भ या समाप्ति पंचमी, अष्टमी, दशमी या चुतुर्दशी तिथिवार चाहें जो भी हो, भरणी, आद्र्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, उत्तराषाढ़ा, अभिजित एवं श्रवण नक्षत्र श्रेष्ठ माने जाते हैं। परन्तु जातक की राशि से ग्रह गणना का विचार करना परम आवश्यक होता है।

कैसे करें पूजा

प्रातःकाल स्नान आदि से निवृत्त होकर पूजा के स्थान पर कुश का आसन स्थापित करके सर्व प्रथम हाथ में जल लेकर अपने ऊपर व पूजन सामग्री पर छिड़कें, फिर संकल्प लेकर कि मैं कालसर्प दोष शांति हेतु यह पूजा कर रहा हूँ। अतः मेरे सभी कष्टों का निवारण कर मुझे कालसर्प दोष से मुक्त करें। तत्पश्चात् अपने सामने चैकी पर एक कलश स्थापित कर पूजा आरम्भ करें। कलश पर एक पात्र में सर्प-सर्पनी का यंत्र एवं कालसर्प यंत्र स्थापित करें, साथ ही कलश पर तीन तांबे के सिक्के एवं तीन कौड़ियां सर्प-सर्पनी के जोड़े के साथ रखें, उस पर केसर का तिलक लगायें, अक्षत चढ़ायें, पुष्प चढ़ायें तथा काले तिल, चावल व उड़द को को पका कर शक्कर मिश्रित कर उसका भोग लगायें, फिर घी का दीपक जला कर इस मंत्र का जाप करें।

ऊँ नमोस्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथिवीमनु।
ये अंतरिक्षे ये दिवितेभ्यः सर्पेभ्यो नमः स्वाहा।।
राहु का मंत्र- ऊँ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः।

इसके बाद गणपति पूजन करें, नवग्रह पूजन करें, कलश पर रखीं समस्त नाग-नागिन की प्रतिमा का पूजन करें व रूद्राक्ष माला से उपरोक्त कालसर्प शांति मंत्र अथवा राहू के मंत्र का उच्चारण एक माला जाप करें। उसके पश्चात् कलश में रखा जल शिवलिंग पर किसी मंदिर में चढ़ा दें, प्रसाद नंदी (बैल) को खिला दें, दान-दक्षिणा व नये वस्त्र ब्राह्मणों को दान करें। कालसर्प दोेष वाले जातक को इस दिन व्रत अवश्य करना चाहिए।

कालसर्प दोष शांति मंत्र
ऊँ नागकुलाय विद्महे विषदन्ताय धीमहि
तन्नो सर्पः प्रचोदयात्


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