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सांसद का काम पसंद न आया तो दूध से मक्खी की तरह निकाल फेंकते हैं वोटर, धर्मेन्द्र त्रिकोणीय मुकाबले में फँसे

कांग्रेस के प्रत्याशी कुंवर सर्वराज सिंह और गठबन्धन की रुचि वीरा से धर्मेन्द्र कश्यप को तगड़ी चुनौती मिल रही है।

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Loksabha Election 2019: त्रिकोणीय मुकाबले में फंसे सांसद धर्मेन्द्र कश्यप

बरेली। लोकसभा चुनाव के लिए बरेली जिले की दोनों लोकसभा सीट पर 23 अप्रैल को मतदान होगा और इन दिनों नामांकन की प्रक्रिया चल रही है। अगर बात करें आंवला सीट की तो यहां से पिछले चुनाव में बीजेपी के धर्मेन्द्र कश्यप चुनाव जीते थे। जबकि समाजवादी पार्टी दूसरे और बसपा तीसरे स्थान पर आई थी। भाजपा ने एक बार फिर सांसद धर्मेन्द्र कश्यप को चुनाव मैदान में उतारा है जबकि गठबन्धन की तरफ से बसपा ने बिजनौर की रुचि वीरा को टिकट दिया है। सपा छोड़ कांग्रेस में शामिल हुए कद्दावर नेता कुंवर सर्वराज सिंह कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में है। इस बार के लोकसभा चुनाव में सांसद धर्मेन्द्र कश्यप की राह आसान नहीं है क्योंकि इस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है। कांग्रेस के प्रत्याशी कुंवर सर्वराज सिंह और गठबन्धन की रुचि वीरा से धर्मेन्द्र कश्यप को तगड़ी चुनौती मिल रही है। इस सीट का इतिहास भी कहता है कि यहाँ पर प्रायः जनता सांसद को बदल देती है। यह कहना गलत नहीं होगा कि जनता सांसद को दूध में से मक्खी की तरह निकाल फेंकती है।

आंवला लोकसभा सीट का समीकरण

बरेली और बदायूं जिले में आने वाला आंवला लोकसभा क्षेत्र में मुस्लिम वोटरों का खासा प्रभाव है। सीट में करीब 35 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं, जबकि 65 फीसदी संख्या हिंदुओं की है। बीते काफी समय से यहां मुस्लिम-दलित वोटरों का समीकरण नतीजे तय करता आया है, इनके अलावा क्षत्रीय-कश्यप वोटरों का भी यहां खासा प्रभाव है। ऐसे में इस बार समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन होने से मुकाबला दिलचस्प हो गया है। साथ ही कांग्रेस ने इस सीट को तीन बार जीतने वाले कुंवर सर्वराज सिंह को मैदान में उतार कर बीजेपी को मुश्किल में डाल दिया है। 2014 के आंकड़ों के अनुसार, यहां करीब 17 लाख वोटर थे। इनमें करीब 9 लाख पुरुष और 7.5 लाख महिला मतदाता थे। आंवला लोकसभा क्षेत्र में कुल 5 विधानसभा सीटें आती हैं, जिनमें शेखपुर, दातागंज, फरीदपुर, बिथरीचैनपुर और आंवला विधानसभा सीटें आती हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में इनमें से यहां सभी सीटों पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी।

2014 में कैसा रहा था जनादेश

पिछले चुनाव में यहां करीब 60 फीसदी मतदान हुआ था। भारतीय जनता पार्टी को मोदी लहर का फायदा मिला और बीजेपी प्रत्याशी धर्मेंद्र कुमार कश्यप ने 41 फीसदी वोट पाकर जीत दर्ज की। समाजवादी पार्टी के कुंवर सर्वराज को 27.3 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे।

आंवला लोकसभा सीट का इतिहास

इस सीट पर 1962 में पहली बार चुनाव हुए थे और सभी को चौंकाते हुए हिंदू महासभा ने जीत दर्ज की थी। हालांकि, उसके बाद 1967, 1971 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी बड़े अंतर के साथ यहां से विजयी रही। 1977 के चुनाव में चली सत्ता विरोधी लहर का असर यहां भी दिखा और भारतीय लोकदल ने जीत दर्ज की, 1980 में भी कांग्रेस को यहां से जीत नहीं मिल सकी और जनता पार्टी यहां से विजयी हुई। 1984 में कांग्रेस बड़े अंतर से यहां जीती। 1984 के बाद से ही यहां कांग्रेस वापसी को तरस रही है। 1989 और 1991 में भारतीय जनता पार्टी लगातार दो बार यहां से जीती। 1996 के चुनाव में बीजेपी को यहां झटका लगा और क्षेत्रीय दल समाजवादी पार्टी विजय होकर सामने आई। लेकिन दो साल बाद हुए 1998 के चुनाव में एक बार फिर बीजेपी यहां जीती। 1999 का चुनाव समाजवादी पार्टी के हक में गया, लेकिन 2004 में जनता दल (यू) के टिकट पर सर्वराज सिंह यहां से तीसरी बार संसद पहुंचे। पिछले दो चुनाव में बीजेपी का इस सीट पर कब्जा है, 2009 का चुनाव मेनका गांधी ने यहां से बड़े अंतर से जीता और 2014 में इस सीट पर बीजेपी को मोदी लहर का फायदा मिला और धर्मेंद्र कुमार कश्यप एकतरफा लड़ाई में जीते।

जातिगत आंकड़े

मुस्लिम - तीन लाख


दलित - तीन लाख


क्षत्रीय- दो लाख


कश्यप - एक लाख


यादव - 1.50 लाख


ब्राह्मण - एक लाख


मौर्य - एक लाख


वैश्य -- 80 हजार


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