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धर्म के नाम पर हिंसा का खेल खत्म, तौकीर के गुर्गे की जमानत पर हाईकोर्ट सख्त ‘सर तन से जुदा’ नारा देशद्रोही सोच, संविधान को चुनौती

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बरेली में भड़की सांप्रदायिक हिंसा और धार्मिक उकसावे के मामले में मौलाना तौकीर रज़ा के गुर्गे नदीम को जमानत देने से दो टूक इनकार करते हुए ऐसा कठोर और नजीर बनने वाला आदेश दिया है, जिसने देशभर में स्पष्ट संदेश दे दिया, कानून से ऊपर कोई नहीं।

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बरेली। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बरेली में भड़की सांप्रदायिक हिंसा और धार्मिक उकसावे के मामले में मौलाना तौकीर रज़ा के गुर्गे नदीम को जमानत देने से दो टूक इनकार करते हुए ऐसा कठोर और नजीर बनने वाला आदेश दिया है, जिसने देशभर में स्पष्ट संदेश दे दिया, कानून से ऊपर कोई नहीं। कोर्ट ने साफ कहा कि गुस्ताख-ए-नबी की एक सजा, सर तन से जुदा जैसे नारे सिर्फ आपराधिक नहीं, बल्कि भारतीय संविधान, विधि-व्यवस्था और देश की संप्रभुता पर सीधा हमला हैं।

धारा 163 की खुलेआम धज्जियां, 5000 की भीड़ और मौत का नारा

कोर्ट के रिकॉर्ड के मुताबिक, धारा 163 लागू होने के बावजूद 26 सितंबर को नमाज के बाद बिहारीपुर में 5000 से ज्यादा लोगों की भीड़ जुटाई गई। भीड़ ने सरकार विरोधी नारे लगाए और खुलेआम मौत की सजा का ऐलान करते हुए सर तन से जुदा का नारा उछाला। अदालत ने इसे हिंसा के लिए सीधी उकसाहट और कानून को ठुकराने की बेशर्म कोशिश करार दिया। जब पुलिस ने गैरकानूनी जमावड़ा हटाने की कोशिश की, तो हालात युद्ध जैसे हो गए। पुलिसकर्मियों पर हमला, लाठियां छीनी गईं, वर्दी फाड़ी गई, पत्थरबाजी, पेट्रोल बम और फायरिंग तक हुई। कई पुलिसकर्मी घायल हुए, सरकारी और निजी संपत्ति को भारी नुकसान पहुंचाया गया। हाईकोर्ट ने इसे राज्य की सत्ता को चुनौती देने वाला कृत्य बताया।

मुख्य आरोपी तौकीर रज़ा, 25 नामजद, 1700 अज्ञात

मौके से गिरफ्तारी और जांच के बाद मौलाना तौकीर रज़ा और नदीम खान को मुख्य आरोपी बताया गया। 25 नामजद और करीब 1700 अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई। सीसीटीवी फुटेज, स्वतंत्र गवाह और केस डायरी ने अभियोजन के दावे को मजबूती दी। बचाव पक्ष ने झूठे फंसाने और आपराधिक इतिहास न होने की दलील दी, लेकिन अतिरिक्त महाधिवक्ता ने कोर्ट को बताया यह मामला धार्मिक उन्माद फैलाकर भीड़ को हिंसा में झोंकने का है। ऐसे नारे भारत की एकता और अखंडता को चुनौती देते हैं।

हाईकोर्ट की ऐतिहासिक टिप्पणी: न यह भारत है, न यह कानून

कोर्ट ने बेहद सख्त लहजे में कहा भारत के कानून में सिर कलम करने जैसी कोई सजा नहीं। ऐसा नारा भारतीय विधि व्यवस्था को खारिज करने जैसा है। यह नारा भारत की परंपरा से नहीं, बल्कि पाकिस्तान के ईशनिंदा कानून की पृष्ठभूमि से जुड़ा है। ज़िया-उल-हक दौर, धारा 295 और एशिया बीबी केस का हवाला देकर अदालत ने स्पष्ट किया कि ऐसे नारे धार्मिक उन्माद का आयात हैं।

इस्लाम की मूल शिक्षाओं के खिलाफ हिंसा

कोर्ट ने पैगंबर मोहम्मद के जीवन से उदाहरण देते हुए कहा कि उन्होंने दया और सहनशीलता का मार्ग दिखाया। हिंसा और सर तन से जुदा का आह्वान इस्लाम की आत्मा के खिलाफ है। वहीं अनुच्छेद 19 पर साफ संदेश है कानून से ऊपर जाकर मौत का फरमान अभिव्यक्ति नहीं, सीधा अपराध है।

जमानत क्यों नामंजूर

गैरकानूनी सभा में सक्रिय भूमिका, पुलिस पर हमला, चोटें, सार्वजनिक-निजी संपत्ति का नुकसान, धारा 163 का खुला उल्लंघन और पर्याप्त सबूत मौजूद, इसलिए रियायत का कोई सवाल नहीं। कोर्ट ने माना कि बरेली पुलिस और प्रशासन ने समय पर, संतुलित और निर्णायक कार्रवाई कर हालात काबू में किए। एडीजी रमित शर्मा, डीआईजी अजय कुमार साहनी, डीएम अविनाश सिंह, एसएसपी अनुराग आर्य समेत तमाम अफसरों की भूमिका की खुलकर तारीफ की गई।


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