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बकरीद के पहले दरगाह आला हजरत से जारी हुआ बड़ा पैगाम

दरगाह स्थित तहरीक ए तहफ़्फ़ुज़ ए सुन्नियत के हेड आफिस में लोगो को संबोधित करते हुए सज्जादानाशीन ने ये पैगाम मुसलमानों को दिया।

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बरेली। बकरीद के पहले दरगाह आला हज़रत के सज्जादानाशीन मुफ़्ती अहसन रज़ा क़ादरी ने मुस्लिमों को पैगाम दिया है। उन्होंने कुर्बानी के फोटो सोशल मीडिया पर डालने से परहेज करने को कहा है साथ ही उन्होंने कुर्बानी के बाद न खाए जाने वाले अंगों और खून को खुले में डालने से मना किया है। दरगाह स्थित तहरीक ए तहफ़्फ़ुज़ ए सुन्नियत के हेड आफिस में लोगो को संबोधित करते हुए सज्जादानाशीन ने ये पैगाम मुसलमानों को दिया।

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खुश दिली के साथ करें कुर्बानी

उन्होंने कहा कि ज़िल्हिज्जा की 10,11 व 12 को अल्लाह की राह में क़ुर्बानी करना हर बालिग़, मुकीम, मुसलमान मर्द व औरत मालिक ए निसाब पर वाजिब है,मुसाफिर और नाबालिग पर क़ुर्बानी वाजिब नही। क़ुर्बानी हज़रत इब्राहीम अलहेसलाम की सुन्नत है। क़ुर्बानी हमें शिक्षा देती है कि जिस तरह भी हो अल्लाह की राह में अपने माल को क़ुर्बान कर दो।इस्लाम मे इस ईद को "ईद-उल-अज़हा" कहा गया है।ईद के मायने है मुसलमानों के खुशी का दिन और अज़हा के मायने है क़ुर्बानी।अल्लाह के रसूल ने इरशाद फरमाया की मालिके निसाब होने के बाद भी क़ुर्बानी न करे तो वो हमारी ईदगाह के करीब न आये। लिहाज़ा मुसलमान अल्लाह की रज़ा की खातिर निहायत खुश दिली के साथ क़ुर्बानी करें।

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इन जानवरों की कुर्बानी जायज

सज्जादानाशीन ने कहा कि जिस पर हर साल क़ुर्बानी वाजिब है उसे हर साल अपने नाम से क़ुर्बानी करनी होगी, कुछ लोग एक साल अपने नाम से क़ुर्बानी करते है दूसरे साल अपने बीवी बच्चों के नाम से करते है ये तरीका सही नही है।क़ुर्बानी ऊँट, भैसा, दुंबा, भेड़ और बकरे की करना जायज़ है। ऊँट की उम्र 5 साल, भैस की उम्र 2 साल व बकरे की उम्र एक साल से कम नही होनी चाहिए।

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क्या न करें

क़ुर्बानी के मौके पर मुसलमान सवाब की उम्मीद से क़ुर्बानी करता है, लेकिन उस क़ुर्बानी के बाद हम पड़ोसियों और एहले वतन लोग के लिए मुसीबत और तकलीफ का कारण बन जाते है। अक्सर लोग क़ुर्बानी के बाद जानवर के सींग,ओजड़ी जैसे न खाये जाने वाले हिस्से खुले में फेंक देते है। कहीं जानवर के खून को गली कूचों में बहा देते है जो बिल्कुल भी दुरुस्त नही है। वही कुछ लोग जानवर की ज़बह की हुई तस्वीरें सोशल मीडिया डाल देते है उनको इससे बचना चाहिए। दरगाह से जुड़े नासिर कुरैशी ने कहा कि क़ुर्बानी का मतलब अपनी जान व माल सब अल्लाह की राह में क़ुर्बान करना। सही तरीक़ा यही है कि जानबर को कही बंद जगह ज़बह करें वहाँ एक गढ्डा करले ले उसमे जानवर का खून और न इस्तेमाल होने वाली चीजों को दफन कर दे। जानवर के खून को नालियों में हरगिज़ न बहाए।

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ये रहे मौजूद

इस मौके पर मुफ़्ती रिज़वान नूरी, मुफ़्ती कफ़ील हाशमी, मुफ़्ती सलीम नूरी, आबिद खान, शाहिद नूरी, अजमल नूरी, कामरान खान, एडवोकेट नावेद रज़ा, हाजी जावेद खान, औरअंगज़ेब नूरी, परवेज नूरी, सय्यद माज़िद अली, इशरत नूरी, शान रज़ा, ताहिर अल्वी, तारिक़ सईद, मोहसिन रज़ा, मंज़ूर खान, यासीन नूरी, आसिफ रज़ा, अश्मीर खान, आलेनबी, ज़ुबैर नूरी, मुजाहिद बेग, गौहर खा,तहसीन रज़ा, काशिफ रज़ा, यामीन कुरैशी, ज़ुबैर रज़ा आदि लोग मौजूद रहे।

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