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अल्ट्रासाउंड में एक, डिलीवरी में दो… और कहीं जुड़वां ‘गायब’ महिला अस्पताल में मशीन फेल या हो रहा बड़ा खेल

बरेली महिला अस्पताल में तीन दिनों के भीतर सामने आए दो प्रसव मामलों ने स्वास्थ्य विभाग को कटघरे में खड़ा कर दिया है। एक मामले में अल्ट्रासाउंड में सिंगल चाइल्ड बताया गया, लेकिन डिलीवरी में दो नवजात पैदा हुए, जबकि दूसरे केस में जुड़वां दिखाए गए, पर जन्म सिर्फ एक का हुआ। विरोधाभासी रिपोर्टों ने अल्ट्रासाउंड सिस्टम, निजी सेंटरों और मेडिकल निगरानी पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

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बरेली। बरेली महिला अस्पताल में बीते तीन दिनों में सामने आए दो प्रसव मामलों ने स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। कभी अल्ट्रासाउंड में जुड़वां बताए गए और प्रसव हुआ एक का, तो कभी जांच में सिंगल चाइल्ड और डिलीवरी में पैदा हो गए दो बच्चे। इन विरोधाभासी मामलों के बाद अल्ट्रासाउंड मशीनों की तकनीकी विश्वसनीयता, रेडियोलॉजिस्ट की दक्षता और निजी सेंटरों की जवाबदेही पर बहस तेज हो गई है।

सिंगल बताया, निकले दो, परिजन हक्के-बक्के

इज्जतनगर के आंबेडकरनगर निवासी आकाश की पत्नी आरती को शुक्रवार तड़के प्रसव पीड़ा हुई। आशा कार्यकर्ता के जरिए 102 एंबुलेंस बुलाई गई और सुबह 6:35 बजे महिला अस्पताल पहुंचते ही डिलीवरी कराई गई। हैरानी तब हुई जब महज पांच मिनट के अंतराल पर दो नवजात जन्मे। परिजन सुभाषनगर और इज्जतनगर के दो निजी अल्ट्रासाउंड सेंटरों की रिपोर्ट लेकर पहुंचे, दोनों में साफ तौर पर सिंगल चाइल्ड दर्ज था। स्टाफ ने तत्काल अफसरों को सूचना दी।

जुड़वां बताया, पैदा हुआ एक, सीसी फुटेज भी खंगाला

भुता के गजनेरा निवासी सुरेश बाबू की पत्नी राजेश्वरी देवी के मामले में उलटा हुआ। अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट में जुड़वां दर्शाए गए, लेकिन प्रसव के दौरान एक ही बच्चा पैदा हुआ। अस्पताल प्रशासन ने लेबर रूम के बाहर और परिसर के सीसीटीवी फुटेज खंगाले, छह घंटे तक की रिकॉर्डिंग में दूसरा शिशु कहीं नजर नहीं आया। न रोने की आवाज, न किसी स्टाफ या परिजन द्वारा दूसरे बच्चे को देखने की पुष्टि। जांच अभी जारी है।

मशीन की खामी या मानवीय लापरवाही

अस्पताल प्रशासन का कहना है कि गर्भवती की अंतिम अल्ट्रासाउंड जांच 11 अक्तूबर को हुई थी और इससे पहले की रिपोर्टों में भी सिंगल चाइल्ड दर्ज था। वहीं, पीसीपीएनडीटी प्रभारी के अनुसार दोनों निजी अल्ट्रासाउंड सेंटर पंजीकृत हैं, लेकिन अक्सर जांच टेक्निकल एक्सपर्ट करते हैं और रेडियोलॉजिस्ट केवल हस्ताक्षर कर देते हैं, यहीं से गड़बड़ी की गुंजाइश बढ़ जाती है।

विशेषज्ञों की दलील, लेकिन सवाल बरकरार

विशेषज्ञ भ्रूण की पोजीशन, गैस, एम्नियोटिक फ्लूड, मशीन सेटिंग, अनुभव की कमी और मूवमेंट जैसी वजहों से 10 प्रतिशत तक त्रुटि की बात मानते हैं। मगर लगातार दो मामलों में इतनी बड़ी चूक ने इस दलील को भी कठघरे में खड़ा कर दिया है। डॉक्टरों ने संबंधित अल्ट्रासाउंड सेंटरों की जांच के लिए सीएमओ को पत्र भेजने की बात कही है। वहीं, शहर में नवजातों की खरीद-फरोख्त जैसी आशंकाएं भी जोर पकड़ने लगी हैं, जिन्हें लेकर स्वास्थ्य विभाग पर पारदर्शी और सख्त कार्रवाई का दबाव बढ़ गया है।