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जानिए क्यों पितृपक्ष को कहा जाता है कनागत, क्या है इसका महत्व व श्राद्ध और तर्पण करने की सही विधि

आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में जानिए पितृपक्ष में पितरो के श्राद्ध, पिंड दान और तर्पण की सही विधि

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pitru paksha

जानिए क्यों पितृपक्ष को कहा जाता है कनागत, क्या है इसका महत्व व श्राद्ध और तर्पण करने की सही विधि

बरेली। शास्त्रों में मनुष्य के तीन ऋण कहे गये हैं। देव ऋण, ऋषि ऋण, पितृ ऋण। इसमें से पितृ ऋण को श्राद्ध करके उतारना आवश्यक है। ब्रह्म पुराण के अनुसार आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में यमराज यमपुरी से पितृों को मुक्त कर देते हैं और वे अपनी संतानों तथा वंशजों से पिण्ड दान लेने के लिए पृथ्वी पर आते हैं। सूर्य के कन्या राशि में आने के कारण ही आश्विन मास के कृष्ण पक्ष का नाम “कनागत” पड़ गया क्योंकि सूर्य के कन्या राशि में आने पर पितृ पृथ्वी पर आकर अमावस्या पर घर के द्वार पर ठहरते हैं। भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से प्रारम्भ करके आश्विनी कृष्ण अमावस्या तक 16 दिन पितृों का तर्पण और विशेष तिथि को श्राद्ध अवश्य करना चाहिए, ऐसा करने से यथोचित रूप से “पितृ व्रत” पूर्ण होता है। इस बार पितृ पक्ष 24 सितंबर से आरम्भ होकर आठ अक्टूबर तक रहेगा। बालाजी ज्योतिष संस्थान के ज्योतिषाचार्य पंडित राजीव शर्मा ने बताया कि इस वर्ष पितृ पक्ष में इस वर्ष गजछाया का विशेष योग का होना अति उत्तम है। यह योग आठ अक्टूबर को सर्वपितृ अमावस्या पर दोपहर 1ः33 बजे से सायं 5ः56 बजे तक रहेगा। इस योग में श्राद्ध करने एवं दान करने वालों को अनंत फल प्राप्त होगा पितृ को मोक्ष प्राप्त होगा और परिवार में किसी प्रकार का कष्ट नही आएगा।

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कैसे करें श्राद्ध
श्राद्धपक्ष में श्राद्ध वाले दिन प्रातःकाल घर को स्वच्छ कर पुरूषों को सफेद वस्त्र एवं स्त्रियों को पीले अथवा लाल वस्त्र धारण करना चाहिए। श्राद्ध का उपयुक्त समय कुतुपकाल मध्यान्ह होता है। भोज्य सामग्री बनने के पश्चात् सर्वप्रथम हाथ में कुश, काले तिल और जल लेकर पूर्व दिशा की ओर मुंह करके संकल्प लेना चाहिए, जिसमें अपने पितृों को श्राद्ध ग्राह्म करने के लिए इनका आवाहन करने और श्राद्ध से संतुष्ट होकर कल्याण की कामना करनी चाहिए। तत्पश्चात् जल, तिल और कुश को किसी पात्र में छोड़ दें एवं श्राद्ध के निमित्त तैयार भोजन साम्रगी में से पंचवली निकालें। देवता के लिए किसी कण्डे अथवा कोयले को प्रज्ज्वलित कर उसमें घी डालकर थोड़ी-थोड़ी भोज्य सामग्री अर्पित करनी चाहिए। शेष जिनके निमित्त है उन्हें अर्पित कर देनी चाहिए। श्राद्ध के लिए पंचबली विधान के पश्चात् ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिए। तदोपरान्त ब्राह्मणों को अपना पितृ मानते हुये ताम्बूल और दक्षिणा प्रदान करनी चाहिए और उनकी चार परिक्रमायें करनी चाहिए, साथ ही श्रद्धा के अनुसार उन्हें दान करना चाहिए। श्राद्ध काल में इन मंत्रों का जाप करना पितृ दोष से शांति करवाता है। इन्हें श्राद्ध काल में प्रतिदिन 108 बार जप करना चाहिए।

मंत्र
ऊँ सर्व पितृ प्रं प्रसन्नोें भव ऊँ।।
ऊँ ह्मों क्लीं ऐं सर्व पितृभ्यो स्वात्म सिद्धये ऊँ फट।।

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धन अभाव में कैसे करें श्राद्ध
जिन व्यक्तियों के पास धन का अभाव रहता उन्हे भी श्राद्ध क्रम करना अनिवार्य होता है क्योकि सभी पितृेश्वर इस समय की प्रतीक्षा करते है ऐसी परिस्थिति में शास्त्रों के अनुसार घास से श्राद्ध हो सकता है अर्थात घास काटकर गाय को खिला दें तो भी पित्रों को तृप्ति मिल जाती है।

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कैसे करें तर्पण
श्राद्ध में भोजन के उपरांत पितृेश्वरो को पानी पिलाना जरूरी होता है। पितेृश्वरों को पानी पिलाने की प्रक्रिया को ’तर्पण’ कहते हैं तर्पण की महिमा गया, पुष्कर, प्रयाग, हरिद्धार आदि तीर्थो में विशेष है घर में रहकर तर्पण करना है तो पीतल की परात, थाली या पात्र में शुद्ध जल भर दें उसमें थोड़े काले तिल, थोड़ा दूध डालकर अपने सामने रख दे तथा उसके आगे दूसरा खाली पात्र रखें। तर्पण करते समय दोनों हाथ के अंगूठे और तर्जनी के मध्य कुश को लेकर दोनों हाथों को परस्पर मिलाकर उसमे जल ले और पितृ का नाम लेकर तृप्यन्ताम कहते हुए जल को दूसरे खाली पात्र में छोड़ दें इस तरह कम से कम एक एक व्यक्ति के लिए तीन तर्पण अवश्य करें।

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किस तिथि पर किसका श्राद्ध करें

आश्विनी कृष्ण प्रतिपदा - यह तिथि नाना-नानी के श्राद्ध के लिए उत्तम मानी गई है।
आश्विनी कृष्ण पंचमी - इस तिथि में परिवार के उन पितृों का श्राद्ध करना चाहिए, जिनकी अविवाहित अवस्था में ही मृत्यु हुई हो।
आश्विनी कृष्ण नवमी - यह तिथि माता एवं परिवार की अन्य महिलाओं के श्राद्ध के लिए उत्तम मानी गई है।
एकादशी व द्वादशी - आश्विनी कृष्ण एकादशी व द्वादशी को उन पितृों का श्राद्ध किया जाता है, जिन्होंने सन्यास ले लिया हो।
आश्विनी कृष्ण चतुर्दशी - इस तिथि को उन पितृों को श्राद्ध किया जाता है जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो।
आश्विनी कृष्ण अमावस्या - इस तिथि को सर्व पितृ अमावस्या भी कहते हैं। इस दिन सभी पितृों को श्राद्ध किया जाना चाहिए।

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