
बरेली। 90 का दशक था बिहार से लेकर उत्तर प्रदेश तक बस एक माफिया डॉन का चर्चा था। हर रोज अखबार उसके द्वारा की गई वारदातों से रंगे रहते थे। सामने चाहे कितना भी बड़ा रसूखदार आदमी क्यों न हो उस पर गोली चलाने में उसके हाथ नहीं कांपते थे। हत्या, किडनेपिंग और फिरौती उसका पेशा था। जी हाँ हम बात कर रहे हैं मशहूर डॉन श्रीप्रकाश शुक्ला की जिसने तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को मारने की सुपारी ली थी। इस खतरनाक डॉन को काबू में करने के लिए उत्तर प्रदेश के डीजीपी ने एसटीएफ का गठन किया। एसटीएफ ने इस बदमाश को गाजियाबाद में ढेर कर दिया था। श्रीप्रकाश शुक्ला के साथ हुई पुलिस की आखिरी मुठभेड़ में बरेली के डीआईजी राजेश कुमार पांडेय भी शामिल थे। राजेश कुमार पांडेय उस समय एसटीएफ में डिप्टी एसपी थे।
हुआ था एसटीएफ का गठन
डीआईजी राजेश कुमार पांडेय बताते है कि श्रीप्रकाश शुक्ला गोरखपुर का रहने वाला था और गोरखपुर रेलवे का हेड क्वाटर था। यहाँ से जारी होने वाले टेंडर से बिहार में भी काम होता था। रेलवे के टेंडर को लेकर बड़े ग्रुप में विवाद हुआ करते थे। इनमे एक तिवारी ग्रुप था जबकि दूसरा शाही ग्रुप था। बिहार के लोगों की भी रूचि इन टेंडर में रहती थी वो सोचते थे कि काम हमारे यहाँ का होता है और टेंडर पूर्वांचल के माफिया डॉन ले लेते है। ऐसे में सूरजभान जो कि बाद में सांसद बने उनकी रूचि भी इन टेंडर में हुई। जिसके बाद सूरजभान ने टेंडर लेने के लिए श्रीप्रकाश शुक्ला की सहायता ली और उस दौरान टेंडर को बिहार से लेकर गोरखपुर और गोरखपुर से लेकर लखनऊ तक तमाम खून खराबा हुआ। उसमे मोड़ तब ज्यादा आया जब लखनऊ में श्रीप्रकाश शुक्ला ने वीरेंद्र शाही की हत्या कर दी। इसके आलावा भी उसने तमाम लोगों की हत्या की जिससे सनसनी फैल गई ऐसे में तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने एसटीएफ का गठन करने के लिए उस समय के एडीजी कानून व्यवस्था को अजयराज शर्मा को निर्देश दिए। जिसके बाद 04 मई 1998 को एसटीएफ का गठन हुआ महानगर में एसटीएफ का एक छोटा से ऑफिस खोला गया। सबसे पहले तीन अफसर एसटीएफ में आए अरुण कुमार एसटीएफ के एसएसपी, सतेंद्रवीर सिंह एडिशनल एसपी और राजेश कुमार पांडेय डिप्टी एसपी बनाए गए इसके बाद एसटीएफ में फिर करीब एक दर्जन तेज तर्रार पुलिसकर्मी और शामिल हुए और आपरेशन श्रीप्रकाश शुरू हुआ। श्री प्रकाश का पता लगाने के लिए पहली बार उत्तर प्रदेश में इलेक्ट्रानिक सर्विलांस का सहारा लिया गया और 21 सितंबर 1998 को गाजियाबाद के इंद्रापुरम थाना क्षेत्र में श्रीप्रकाश शुक्ला और उसके दो साथियों को मुठभेड़ में एसटीएफ ने मार गिराया।
नहीं कांपते थे हाथ
श्रीप्रकाश शुक्ला के निशाने पर जो होता था वो उसे मौत के घाट ही उतार कर ही दम लेता था चाहे सामने वाला कितना ही बड़ा रसूखदार क्यों न हो। श्रीप्रकाश शुक्ला उस समय चर्चा में ज्यादा आया जब उसने 1997 में बाहुबली नेता वीरेंद्र शाही की लखनऊ में हत्या कर दी थी। इस घटना के बाद उत्तर प्रदेश में उसका आतंक कायम हो गया था। इसके बाद उसने 13 जून 1998 में बिहार सरकार के मंत्री ब्रज बिहारी प्रसाद को पटना के इंदिरा गांधी अस्पताल में उनके सुरक्षा कर्मियों की मौजूदगी में ही गोलियों से छलनी कर दिया। इस घटना के बाद उत्तर प्रदेश से लेकर बिहार तक उसका आतंक हो गया।
पुलिस से हुई मुठभेड़
श्रीप्रकाश शुक्ला का आतंक बहुत था लेकिन पुलिस उसे पहचानती नहीं थी क्योकि पुलिस के पास उसका कोई फोटो नहीं था। पुलिस से उसकी पहली मुठभेड़ लखनऊ के जनपद में हुई थी। पुलिस को सूचना मिली थी कि श्रीप्रकाश शुक्ला बाल कटवाने आया है लेकिन ये मुठभेड़ नाकाम रही और इसमें पुलिस का एक जवान शहीद हो गया।
कल्याण सिंह की ली सुपारी
इस समय तक श्रीप्रकाश शुक्ला आतंक पूरे प्रदेश में हो गया था जिसके बाद उसने पांच करोड़ रूपये में तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को मारने की सुपारी ले ली। पुलिस को जब इसका पता चला तो पुलिस के नीचे से मानो जमीन खिसक गई।
Published on:
04 May 2020 01:16 pm
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