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खान बहादुर खान से कदर खौफजदा थे अंग्रेज कि फांसी देने के बाद भी बेड़ियों में कैद कर दफनाया था

अंगेजों के दिल में खान बहादुर खान का इतना खौफ था कि उनके शहीद होने पर पुरानी जिला जेल में बेड़ियों समेत दफना दिया था।

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खान बहादुर खान से कदर खौफजदा थे अंग्रेज कि फांसी देने के बाद भी बेड़ियों में कैद कर दफनाया था

बरेली। बरेली में जब भी आजादी की लड़ाई की बात होगी तो रुहेला सरदार खान बहादुर खान का नाम सबसे पहले लिया जाएगा। खान बहादुर खान ने स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई थी और ब्रिटिश हुकूमत की ईंट से ईंट से बजा दी थी। 1857 की क्रांति में यहाँ के नवाब और क्रांतिकारी हाफिज रहमत खान के पोते खान बहादुर खान भी इस जंग में कूद पड़े। अंग्रेजों के खिलाफ जंग के लिए खान बहादुर खान ने अपने मुंशी शोभाराम की मदद से सेना तैयार की और अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था उनकी सेना के सामने अंग्रेजों ने घुटने टेंक दिए थे। अंगेजों के दिल में खान बहादुर खान का इतना खौफ था कि उनके शहीद होने पर पुरानी जिला जेल में बेड़ियों समेत दफना दिया था।

आखिरी रुहेला सरदार थे खान बहादुर खान

खान बहादुर खान आखरी रोहिला सरदार थे वह अंग्रेजी कोर्ट में बतौर जज कार्यरत थे उन्हें अंग्रेज़ों का विश्वास हासिल था और इसी विश्वास का फायदा उठाकर उन्होंने अपनी पैदल सेना तैयार कर ली थी खान बहादुर ने अपने कई सैनिकों को दूसरे राज्यों में अंग्रेज़ों से लड़ाई के लिए भेजा,31 मई 1857 को नाना साहब पेशवा की योजना के अनुसार उन्होंने रुहेलखंड मंडल को अंग्रेज़ों से मुक्त करा लिया सभी अंग्रेज़ उनके डर से नैनीताल भाग गए इसके बाद लगातार खान बहादुर खान का अंग्रेज़ों से संघर्ष चलता रहा इस बीच लखनऊ के अंग्रेज़ों के अधीन चले जाने से नाना साहब भी बरेली आ गए इसके बाद नकटिया पुल पर 6 मई 1858 में आखरी बार अंग्रेज़ों और खान बहादुर खान के बीच संघर्ष हुआ जिसमे भारतीयों को हार का मुँह देखना पड़ा।इसके बाद खान बहादुर खान नेपाल चले गए लेकिन राणा जंग बहादुर ने धोखे से उन्हें अंग्रेज़ों के हवाले कर दिया खान बहादुर खान पर मुक़दमा चलाया गया और उन्हें यातनाएं दी गयी। 22 फरवरी को कमिश्नर रॉबर्ट ने दोषी मानते हुए खान बहादुर खान को फांसी की सजा सुना दी और 24 मार्च 1860 को उन्हें पुरानी कोतवाली पर सरे आम फांसी दे दी गयी।

बदहाल है मजार

खान बहादुर खान को पुरानी कोतवाली में फांसी देने के बाद अंग्रेजों को भय था कि लोग वहां पर इबादत न करने लगे जिसके कारण खान बहादुर खान को जिला जेल में बेड़ियों के साथ ही दफन कर दिया गया।जेल में बंद खान बहादुर खान की कब्र को काफी लम्बी जद्दोजेहाद के बाद जेल से बाहर निकला जा सका। अब जिला जेल यहाँ से शिफ्ट हो जाने के कारण शहीद की मजार की देखभाल करने वाला कोई नहीं बचा हैं। शहीद की यह मज़ार सिर्फ एक यादगार है पर उन्हें याद करने यहाँ कोई नहीं आता हद तो यह है कि इसके रखरखाव के लिए भी यहाँ कोई नहीं है।बस इनके शहीद दिवस पर लोग यहाँ सिर्फ खानापूर्ति करने आते हैं।इस मज़ार के अलावा इस वीर क्रांतिकारी की कोई निशानी इस शहर में नहीं जो लोगो को उसकी याद दिलाये और कभी किसी ने इस मुद्दे पर कोई आवाज़ भी नहीं उठाई।


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