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गाँव की बेटियां चक दे इण्डिया के लिए हो रही तैयार

गरीबी के कारण उनके पास हॉकी और जूते खरीदने के रूपये नहीं थे लेकिन शहर के एक समाजसेवी ने उनकी मदद की। तब से ये लड़कियां अपने घर से 30 किलोमीटर दूर स्पोर्ट्स स्टेडियम में हॉकी का प्रशिक्षण ले रही हैं

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बरेली। जब हम जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर भोजीपुरा के मसीत गाँव पहुंचे तो वहां पर पगडंडी पर कुछ ऐसा नजारा था कि कदम अपने आप रुक गए। दरअसल गांव की पगडंडी पर गाँव की करीब आधा दर्जन लड़कियां हवाई चप्पल पहन कर हॉकी की प्रैक्टिस कर रही थी। जब पास जाकर उनसे बात की तो इन ग्रामीण लड़कियों की आँखों में देश के लिए मैडल जीतने की चमक थी । बात आगे बढ़ी तो लड़कियों ने बताया कि हॉकी के खेल में वो देश का नाम रोशन करना चाहती है। उन्होंने बताया कि गरीबी के कारण उनके पास हॉकी और जूते खरीदने के रूपये नहीं थे लेकिन शहर के एक समाजसेवी ने उनकी मदद की। तब से ये लड़कियां अपने घर से 30 किलोमीटर दूर स्पोर्ट्स स्टेडियम में हॉकी का प्रशिक्षण ले रही हैं और जब ये लड़कियां प्रैक्टिस के लिए शहर नहीं आ पाती है तो गाँव की पगडंडियों पर ही हॉकी खेल लेती है।

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30 किलोमीटर जाती है लड़कियां

बरेली जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर मसीत गाँव की ये लड़कियों हॉकी की खिलाड़ी हैं। खेल संसाधनों की कमी और गाँव में प्रैक्टिस के लिए मैदान न होने के बाद भी इन लड़कियों के हौसले कम नहीं हुए हैं। गाँव की गलियों और पगडंडियों पर खेलने वाली देश के लिए खेलना चाहती हैं। हॉकी खेलने वाली जागृति, उपासाना, वीरा, रेशमा, पूजा ये सभी छात्राये है अलग अलग कॉलेजों से पढ़ाई भी कर रही है । वही उपासना का कहना है- एक बार गाँव की लड़कियां स्टेडियम में खो-खो खेलने गई थीं। वहीं पर कुछ लड़कियों को हॉकी खेलते देखा। तभी से हमने भी ठान लिया कि हम लोग भी हॉकी खेलेंगे और देश लिए मेडल लाएंगे। इस टीम को लीड करती है बीलिव की छात्रा जाग्रति शर्मा। जागृति पढ़ाई के साथ साथ हॉकी के लिए समय निकालती है जागृति और उनकी टीम खेलने के लिए तीस किलोमीटर शहर के स्टेडियम आती है वही हॉकी कोच इन लड़कियों को ट्रैनिंग देते है पैसो की कमी आने पर कोच मुजाहिद अली दो दिन गाँव में जाकर ट्रैनिंग देते है। जागृति प्रदेश स्तर की प्रतियोगिता में भाग ले चुकी है और प्रदेश के कई जिलों में खेल चुकी है।

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समाजसेवी ने की मदद

घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण इनके पास खुद की हॉकी स्टिक नहीं थी, जूते नहीं थे और नंगे पैर खेलते थे। स्टेडियम में प्रेक्टिस करने के लिए वहां के कोच इन्हे एक घंटे के लिए हॉकी स्टिक देते थे। जिसे एक घंटे पूरी शिद्दत और मेहनत से हॉकी से खेलती थी । इन परेशानियों का सामना करने पर बरेली के समाजसेवी संजीव जिंदल सामने आये और इनका हौसला बढ़ाते हुए इन सभी खिलाड़ियों को हॉकी, जूते, मोज़े की किट मुहैया कराई। संजीव जिंदल का कहना है-किसी भी खेल के लिए सबसे ज्यादा स्टेमिना की जरूरत होती है। क्योंकि खेल खेलते वक्त बहुत ताकत होनी चाहिए जो इन लड़कियों में बहुत ज्यादा है। ग्रामीण परिवेश की होने कारण इनमें स्टेमिना बहुत हैं।

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कोच भी खिलाडियों के मुरीद

बरेली स्टेडियम के हॉकी कोच मुजाहिद का कहना है मसीत गाँव की इन लड़कियों में हॉकी को लेकर गजब का उत्साह है। जब ये लड़कियां हमारे पास पहली बार आईं तो हमें लगा की बस शौक पूरा करने के लिए आई हैं। लेकिन लड़कियों में हॉकी को लेकर जो जुनून है उसे देखकर हम दंग रह गए। इनमें से कुछ लड़कियां बहुत शानदार तरीके से हॉकी खेलती हैं। कुछ को गजब का टेपिंग और ड्रिवलिंग करती हैं। मसीत गाँव की इन लड़कियों में से कुछ अंतरजनपदीय प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले चुकी हैं।

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