बरेली। ये दौर सोशल मीडिया का है। जिसमे लोग सोशल मीडिया पर मौजूद तमाम प्लेटफार्म की मदद से एक दूसरे से जुड़ते है। सोशल मीडिया के जहां तमाम फायदे है तो इसके खतरे भी कम नही है। अगर बात करें सोशल मीडिया पर होने वाली दोस्ती की तो युवा सोशल मीडिया पर जमकर दोस्ती करते है लेकिन उन्हें इस दोस्ती पर कम ही विश्वास है। फ्रेंडशिप डे के अवसर पर पत्रिका ने इस बारे में बात की युवाओं से जिनका कहना है कि सोशल मीडिया पर दोस्त तो बहुत होते है लेकिन ये दोस्ती सिर्फ आभासी होती है जबकि असली दोस्ती तो मिलने जुलने में है।
रियल दोस्ती पर भरोसा
बरेली कॉलेज में बीए प्रथम वर्ष की छात्रा रेखा का कहना है कि आज के दौर में वर्चुल फ्रेंडशिप का है लेकिन सोशल मीडिया की दोस्ती पर भरोसा नहीं किया जा सकता है लेकिन जो रियल फ्रेंडशिप होती है उसमे दोस्त पर भरोसा किया जा सकता है। क्योकि रियल फ्रेंड हमारे साथ रहता है और हम से मुलाकात होती रहती है इस लिए इन दोस्तों पर भरोसा किया जा सकता है। सोशल मीडिया पर तो बहुत से दोस्त होते है लेकिन सब पर भरोसा नहीं किया जा सकता है।
निजी रिश्ते खत्म हो रहे
सिविल लाइंस इलाके के रहने वाले युवा अंकित का कहना है कि जब हम अपने दोस्त से मिलते है तो उसका हाल चाल ले सकते है उसकी भावनाएं समझी जा सकती है जबकि सोशल मीडिया साइट्स पर हुई दोस्ती में ये सब नहीं हो पाता है। उनका कहना है कि सोशल मीडिया के माध्यम से पूरी दुनिया के तो संपर्क में रहते है लेकिन अपने निजी रिश्ते खोते जा रहे है। बरेली कॉलेज में दर्शन शास्त्र विभाग के छात्र सजल शिव मिश्रा का कहना है कि दोस्ती का मतलब होता है समर्पण जो कि वर्चुअल फ्रेंडशिप में सम्भव नहीं है।
वर्चुअल दुनिया आभासी है
बरेली कॉलेज में दर्शन शास्त्र विभाग के हेड डॉक्टर आरके गुप्ता ने बताया कि सोशल साइट्स सिर्फ जुड़ने का लिंक होता है इस पर दोस्ती नही होती है। दोस्ती कुछ गहरी चीज है जिसे सिर्फ दोस्त समझ सकते है।उन्होंने बताया कि जब हम दोस्त से मिलते है तो हमे उसका सुख दुःख पता चलता है जबकि वर्चुअल दोस्ती में ऐसा नही है। वर्चुअल दुनिया आभासी है।