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जानवर यहां मरने लगे प्यास से, पानी के इंतजाम की दरकार

देश के पश्चिमी सरहदी गांवों में इन दिनों तपते रेगिस्तान ने जीना मुश्किल कर दिया है। 45 डिग्री तापमान वाले मरुस्थलीय इलाके में दोपहर बाद पारा 48 डिग्री तक पहुंच रहा हैं। ऐसे में सबसे ज्यादा मूक पशुधन प्रभावित हो रहा हैं।

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जानवर यहां मरने लगे प्यास से, पानी के इंतजाम की दरकार

जानवर यहां मरने लगे प्यास से, पानी के इंतजाम की दरकार


बाड़मेर पत्रिका.
देश के पश्चिमी सरहदी गांवों में इन दिनों तपते रेगिस्तान ने जीना मुश्किल कर दिया है। 45 डिग्री तापमान वाले मरुस्थलीय इलाके में दोपहर बाद पारा 48 डिग्री तक पहुंच रहा हैं। ऐसे में सबसे ज्यादा मूक पशुधन प्रभावित हो रहा हैं।
आजादी के 74 वर्षों बाद भी सरहदी गांवों में पेयजल संकट से निपटने की कोई योजना धरातल पर कार्यान्वित नहीं हो पाई है। परंपरागत कुएं, बेरियों, तालाबों पर ही निर्भर है।


तापमान बढऩे के साथ सूखने लगते हैं तालाब,बेरियाँ
तपते रेगिस्तान की वजह से यहां पारा 48 से 50 डिग्री पहुंचने लगता हैं। जिससे बारिश से जमा पानी एवं बेरियां सूखने लगती हैं। इन दिनों यही हालत बॉर्डर के कई गांवों में बने हुए हैं।

संसाधनों के अभाव में जलदाय विभाग लाचार
उपखण्ड क्षेत्र के सैकड़ों गांवों में खराब ट्यूबवेल,जली हुई मोटर, बार बार मरम्मत हुए उपकरणों को लेकर आमजन परेशान हैं। वहीं स्टाफ एवं संसाधन की कमी को लेकर जलदाय विभाग लाचार दिखता है। सबकुछ ठेके पर डालकर सरकार निश्चित है।


विकट हालात में ग्रामीण चंदा इक_ा कर पशुकुण्ड बना रहे
सरहदी सुंदरा, पांचला,रोहिड़ी, बिजावल, रोहिड़ाला,द्राभा, ख़बड़ाला ग्राम पंचायतों के सैकड़ों गांवों में भारी पेयजल संकट उत्पन्न हो गया है। सर्वाधिक गौवंश एवं पशुधन वाले इस क्षेत्र में पानी के अभाव में पशुधन दम तोडऩे लगे हैं। ऐसे विकट हालातों से निपटने के लिए ग्रामीणों ने आपसी जनसहयोग से चंदा इक_ा कर पशुकुण्ड बनाने शुरू कर दिए हैं। प्रतिदिन हजारों रुपए के महंगे टैंकर डलवाकर पशुधन को बचाने की जुगत कर रहे हैं।


क्षेत्र में वन्यजीवों की है बहुतायत
सीमावतीज़् क्षेत्र में विभिन्न प्रजातियों के वन्य जीवों सहित पालतू ऊंट,गाय,बैल,भेड़, बकरियों सहित कई जीव जंतु निवास करते हैं लेकिन तापमान बढऩे व पानी के अभाव में यह दम तोडऩे लगते हैं।
ग्रामीणों का कहना है
***** गांव के तालाब अवैध खनन की भेंट चढ़ चुका हैं।जिससे बारिश का पानी ज्यादा दिन ठहरता नहीं है। अबतक बेरियों से पशुधन की प्यास बुझाई। तापमान बढऩे के साथ बेरियां भी सूख गई। ग्रामीण आपस में चंदा करके पशुकुण्ड बना महंगे दामों पर पानी के टैंकर डलवा रहे हैं।
- भुट्टा सिंह
ग्रामीण रोहिड़ी
आजादी के बाद से बॉर्डर का किसान, पशुपालक प्रकृति पर ही निर्भर है। चुनावों के समय इंदिरा गांधी नहर,नर्मदा पाइपलाइन के सपने दिखाए जाते हैं लेकिन हालात जस के तस हैं। हालात यहां तक खराब हो रहे है कि चुनावों की राजनीति पशुकुण्ड के आड़े आ रही हैं।
- तनसिंह भाटी
ग्रामीण बिजावल


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