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Barmer News: कभी माना जाता था काले पानी की सजा, अब जीरे की महक से गुलजार

Rajasthan News : देश की अंतिम सरहद लगातार अकाल व सूखे के कारण कभी काले पानी सजा मानी जाती थी, लेकिन अब जीरे की महक से गुलजार हो रही है।

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Barmer News : देश की अंतिम सरहद लगातार अकाल व सूखे के कारण कभी काले पानी सजा मानी जाती थी, लेकिन अब जीरे की महक से गुलजार हो रही है। वहीं यहां सरसों के खेतों से धोरे सुहाने लग रहे हैं। जानकारी के अनुसार पिछले एक दशक से गडरा रोड, त्रिमोही, बांडासर, उतरबा, सरगीला, लालासर, करीम का पार, खानियानी, ओनाडा, खलीफा की बावड़ी, रावतसर, गिराब, आसाड़ी, आगासडी और कूबड़िया ग्राम पंचायतों के सैकड़ों गांवों में ट्यूबवेल से सिंचाई होने लगी है। भूगर्भीय परिवर्तन या सीमा पार से जल स्तर रिचार्ज होने से ऐसा संभव हुआ है। पाक के सिंध क्षेत्र और आस-पास के इलाके में सिंचित खेती होती है। ऐसे में भूगर्भ से रिसाव के कारण किसानों को मीठा पानी मिल रहा है।

जानकारी के मुताबिक भारत- पाक सीमा पर स्थित इन गांवों में कभी जहर से भी खारा पानी पीने को मिलता था। वर्षो अकाल व सूखे से किसानों का सामना होता था। यहां सरकारी नौकरी में पोस्टेड कर्मचारी इसे काले पानी सजा के तौर पर मानते थे लेकिन विगत कुछ वर्षों से यहां भूगर्भीय परिवर्तन से ट्यूबवेल से मीठा पानी मिलने लगा है।

विशेषज्ञों के अनुसार पहले यहां खारा पानी होने से यह जमीन किसी तरह से उपयोगी नहीं थी। ऐसे में कौड़ियों के दाम में भी इसे कोई खरीदने के लिए तैयार नहीं था,लेकिन अब सीमावर्ती गांवों में ट्यूबवैल से पानी मिलने से किसानों की किस्मत बदल रही है। जिन लोगों ने जमीनें सस्ते दामों में बेच दी, वे अब पछता रहे हैं।

बॉर्डर के उस पार रह गईं जमीनें
जानकारी के अनुसार देश विभाजन के समय पाकिस्तान छोड़ कर भारत आए कई लोगों की जमीनें उस पार छूट गईं। वहीं कई किसानों की जमीनें तारबंदी के कारण विभाजित हो गईं। सरकार ने केवल तारबंदी में आई जमीन का कुछ मुआवजा देकर किसानों को ठग लिया। आज भी तारबंदी से जीरो पॉइंट के बीच सैकड़ों बीघा जमीन बेकार हो गई है।

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उपखंड में पंद्रह से दो हजार कृषि कनेक्शन
जानकारी के मुताबिक वर्तमान समय में उपखण्ड क्षेत्र में पंद्रह सौ से दो हजार कृषि कनेक्शन चल रहे हैं। वहीं इतने ही किसानों ने बिजली कनेक्शन के लिए आवेदन कर रखे हैं। कुछ क्षेत्र डीएनपी में होने के कारण एनओसी नहीं मिल रही है। क्षेत्र की अधिकतर आबादी अजा-जजा वर्ग की है। ऐसे में उन्हें कृषि कनेक्शन भी हाथोंहाथ मिल रहा है।

अब जीरा, ईसबगोल व सरसों से कमाई
गौरतलब है कि सीमावर्ती गांवों में हर दो-तीन साल में अकाल की स्थिति रहती है। कम बारिश के चलते यहां के खेतों में बाजरा, मूंग व ग्वार जैसी फसले ही पनपती थी, वो भी पर्याप्त बारिश होने पर अब स्थिति बदल गई है। यहां ईसबगोल,सरसों, तारामीरा, जीरा व अरण्डी जैसी फसलें तैयार हो रही हैं। इससे किसानों की आर्थिक स्थिति भी सुदृढ़ हो रही है।


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