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थार के रेगिस्तान में पेड़ों की रक्षक है देवियां

- 46374 हैक्टेयर में ओरण-गोचर, यहां कोई नहीं काटता पेड़ - 526 गांवों में देवी के नाम है ओरण-गोचर की भूमि -सामाजिक संकल्प की परम्परा निभा रहे हैं लोग

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Goddess of the trees in the desert of Thar

Goddess of the trees in the desert of Thar

रतन दवे

बाड़मेर थार के रेगिस्तान में ' देवीशक्ति Ó का इससे बड़ा उदाहरण क्या होगा कि जहां 46374 हैक्टेयर जमीन पर कोई एक भी हरा पेड़ कई दशकांे से नहीं काटा जा रहा। देवी के नाम की ओरण-गोचर के लिए आरक्षित इस जमीन पर उगने वाली वनस्पति का उपयोग केवल पशु चारागाह के लिए होता है।

जिले की वांकलमाता विरात्रा के नाम की ढोक ग्राम पंचायत की ओरण तो 18000 बीघा के करीब है। 45 सौ बीघा में नागणेच्या माता नागाणा की ओरण है। इसके अलावा देवल,आवड़, हिंगलाज, जगदंबा सहित कई देवियों के नाम ओरण 526 गांवों में है।


थार के रेगिस्तान में सालों से पानी का अभाव रहा है और वनस्पति तो यहां मीलों चलने के बाद नजर आती थी। एेसे में गांवों में जहां तालाब थे और बरसाती पानी का बहाव रहा वहां लोगों ने दूरदर्शिता के साथ एेसी जमीन को आरक्षित कर लिया। इस जमीन पर थार की वनस्पति के पेड़ पौधे तो पनपाए ही साथ ही इनको आस्था के साथ जोड़ते हुए देवी के नाम की जमीन सुरक्षित व संरक्षित कर ली।

एक सर्वमान्य निर्णय ले लिया गया कि इस जमीन पर पेड़ों को नहीं काटा जाएगा और जो भी वनस्पति उगेगी उसका केवल चारागाह के रूप में ही उपयोग होगा। यह संस्कृति आगे बढती गई और आज भी सदियों बाद जिले के 530 गांवों में ओरण और गोचर सुरक्षित है। 46374 हैक्टेयर जमीन ओरण गोचर की है जहां लाखों पेड़ है।

इसमें रोहिड़ा, कांकेटी, कूम्बट, बोरड़ी, गांगेटी, गूंदी, नीम, सरस, फोग, थोर, गूलर, गूगल, केर, खेजड़ी, बबूल, जाळ, गोंद और किस्म-किस्म की वनस्पति है।

समृद्ध है यहां पशुधन-

जिले में ओरण गोचर के क्षेत्र में लोगों ने उस जमाने में खुद श्रमदान कर तालाब और नाडियां बनाई। इन जलाशयों में पशुधन पानी पीता है और अकाल में भी उनको ओरण-गोचर में चरने को कुछ न कुछ वनस्पति मिल जाती है। इसीका नतीजा है जिले में 55 लाख पशुधन है और इसमें 26 लाख के करीब भेड़ बकरियां है जो इसी ओरण-गोचर पर निर्भर है।

यह संकल्प से संभव हुआ है-

526 गांवों का सर्वे किया। यहां ओरण और गोचर एक सामाजिक संकल्प है। यह पेड़ों को बचाने के साथ अकाल में पशुधन के लिए भी प्रबंध था। यहां पशु और खेती ही जीवन का आधार रहे हैं। देवी के प्रति हर गांव में श्रद्धा है। एेसे में देवी के नाम पर आरक्षित किए गए ओरण गोचर में सामूहिक सौगंध ली गई और इसकी सालों बाद पालना हो रही है। राज्य सरकार को भी इस ओर ध्यान देना होगा।- डॉ. भुवनेश जैन, शोधकर्ता ओरण गोचर


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